चौथी दुनिया पढ़िए, फैसला कीजिए

सोमवार, 20 जुलाई 2009

संसद, सर्वोच्च न्यायालय और सबसे बड़ी

सेक्स मंडी


लगता है केंद्र सरकार को धारा 377 हटाने की जल्दबाज़ी है. दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. वैसे तो, नेता और अधिकारी कोर्ट में लंबित मामले पर अपनी ज़ुबान खोलने से बचते हैं, लेकिन धारा 377 के मामले में क़ानून मंत्री वीरप्पा मोइली तो बोले ही, गृह सचिव गोपाल कृष्ण पिल्लई ने भी इंटरव्यू देना शुरू कर दिया है. गृह सचिव का कहना है कि सरकार दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के ख़िला़फ सुप्रीम कोर्ट नहीं जाएगी. इसकी वजह है कि राजनीतिक गलियारों से यह ख़बर आ रही है कि सरकार दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से भी एक-दो

क़दम आगे की सोच रही है. यानी सरकार ने धारा 377 को पूरी तरह से ही ख़त्म करने का मन बना लिया है. हैरानी की बात है कि विरोधी पार्टियों ने भी इस मामले पर चुप्पी साध ली है. यह चुप्पी आगे आने वाले दिनों में काफी ख़तरनाक साबित होने वाली है. धारा 377 के हटते ही भारत में वेश्यावृत्ति (महिला और पुरुष) को मानो लाइसेंस मिल जाएगा. इस धारा को हटाने का ़फैसला महिला विरोधी भी है. इसलिए कि भारत की महिलाओं के हाथ से वह हथियार ही छिन जाएगा, जिसके ज़रिए वे अपने पति की मनमानी के ख़िला़फ क़ानून का सहारा ले सकती हैं. ऐसा लगता है कि भारतीय संसद और न्यायिक व्यवस्था जाने या अनजाने उन ताक़तों के हाथों भ्रमित कर दी गई है, जो ताक़त तीन खरब डालर की सेक्स इंडस्ट्री के पीछे है. दुनिया भर के कमज़ोर और उदार देशों में सेक्स की मंडी खोलने के बाद अब उनकी नज़र भारत पर टिकी है. इन ताक़तों को भारत में एक बड़ा सेक्स-बाज़ार नज़र आ रहा है. उन्हें लगता है कि भारत एक कमज़ोर देश है, जहां कुछ भी संभव है. यही वजह है कि ये ताक़तें भारत को दुनिया का चौथे नंबर का सेक्स-बाज़ार बनाने की ताक में हैं. जिस तरह देश का सुप्रीम कोर्ट किसी व्यक्ति या संस्था को यह नोटिस देता है कि आपके ख़िला़फ अमुक आरोप हैं और क्यों न हम आपको दोषी समझ लें? यदि आप दोषी नहीं हैं तो उसकी सफाई दें. ठीक उसी तरह देश की जनता को भी क्या यह मान लेने का हक़ नहीं कि इस देश को चलाने वाले लोग और इस देश की न्यायिक व्यवस्था जाने-अनजाने इस साज़िश में शामिल है ? हमारे पास जो तथ्य हैं, वे इस संदेह को पुष्ट करते हैं. भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के बारे में दिल्ली हाईकोर्ट के ़फैसले से देश में एक नई बहस छिड़ गई है. इस मामले से जुड़े तथ्यों को हम पाठकों के सामने सिलसिलेवार तरीक़े से रख रहे हैं, ताकि सभी संबंधित पक्ष अपनी-अपनी सफाई पेश कर सकें. यक़ीन मानिए, अगर हमारे आरोप ग़लत साबित होते हैं, तो हमें बहुत ख़ुशी होगी. अदालत में चले इस मामले के पूरे ब्योरे पर नज़र डालते हैं, ताकि जनता को कम से कम यह तो पता चले कि सच्चाई क्या है...

पूरी ख़बर के लिए पढ़िए http://www.chauthiduniya.com/