चौथी दुनिया पढ़िए, फैसला कीजिए

गुरुवार, 27 अगस्त 2009

मार्च में छह दिसंबर दुहराने की साज़िश

आर.के. यादव

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एक बार फिर अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि निर्माण मुद्दे को गरमाना चाहती है. अपनी खोती जा रही राजनैतिक पकड़ को मज़बूत करने के लिए वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के ज़रिए 16 मार्च 2010 से इस दिशा में नई पहल शुरू करने की कोशिश में है. भाजपा की मंशा को देख संघ भी एक बार फिर अपने स्वयंसेवकों के साथ शंखनाद करके पूरे देश की राजनीति में अफरा-तफरी मचाने को तैयारी में है. मंदिर निर्माण के लिए 16 मार्च से 16 मई के बीच हरिद्वार में कुंभ मेले के दौरान निर्माण से जुड़े संगठन व संत कार्यशाला में रखी गई शिलाओं पर लग रही काई को साफ कराने तथा उन शिलाओं को विवादित परिसर के नज़दीक ले जाने की तैयारी करेंगे.हरिद्वार कुंभ मेले में संत यह भी तय करेंगे कि लखनऊ से अयोध्या तक वे पैदल चल कर जाएं और कारसेवकपुरम से राम जन्मभूमि के क़रीब तक शिलाओं को उठाकर ले जाएं. रामजन्म भूमि न्यास से जुड़े पूर्व सांसद डॉ. राम विलास वेदांती ने एक विशेष बातचीत मेंे बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी की नेतृत्व वाली सरकार के समय एनडीए के घटक दल नहीं चाहते थे कि मंदिर निर्माण हो. यदि भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार होती तो अब तक मंदिर बन चुका होता. 1999 से लेकर 2008 तक भाजपा और आरएसएस द्वारा कोई भी आंदोलन स़िर्फ इसलिए नहीं किया गया कि उसे आशा थी कि जनता उसे हिंदुत्व और राम मंदिर निर्माण के राष्ट्रीय मुद्दे पर शासन-सत्ता पुन: सौंप देगी. लेकिन जनता उनके छलिया आश्वासनों को समझकर उनकी नीतियों को पूरी तहर चकनाचूर कर उन्हें सत्ता के नज़दीक भी नहीं फटकने दिया. ऐसे में सत्तालोलुप भाजपाइयों ने एक बार फिर हिंदुत्व की रक्षा और राम मंदिर निर्माण के लिए कुचक्र रचने में जुट गए हैं. स़िर्फ इस मक़सद से कि पार्टी की डूबती को बचाया जा सके. इसके लिए उसने आरएसएस और संतों को फिर हथियार बना डाला है. इसी उद्देश्य की ख़ातिर अभी हाल में ही आठ अगस्त को अयोध्या स्थित राम सुंदर धाम राजकोट में विहीप सुप्रीमो अशोक सिंघल, मणिराम छावनी महंत ज्ञानदास, धर्मदास, बड़ा भक्तमाला महंत कौशल किशोर दास, दिगंबर अखाड़ा के महंत सुरेश दास, डॉ. राम विलास वेदांती, महंत जगदेव दास, महंत कन्हैया दास आदि ने बैठक की. इसमें हिंदुत्व की बुझी आग को फिर जलाने का ़फैसला किया गया.श्री वेदांती ने बताया कि तीन मंज़िल तक बनने वाले जन्मभूमि मंदिर की दो मंज़िल तक के पत्थर तराशे जा चुके हैं. एक मंज़िल बाक़ी है जो निर्माण के समय ही पूरा कर लिया जाएगा. अभी आंदोलन की पूरी रूपरेखा कुंभ मेले में तय होनी है. संत यह भी तय करेंगे कि जिन शिलाओं का पूजन देश-विदेश में हुआ था, उन शिलाओं को विहिप से जुड़े संत राम जन्मभूमि के अत्यंत नज़दीक तक अपने सिर पर रख कर ले जाएं और वहां रखें. सवाल है कि क्या इस बार के कुंभ मेले में कारसेवकों के बिना ही संत कोई इतना बड़ा निर्णय लेने में कामयाब होंगे? ख़ास कर यह देखते हुए कि इस समय केंद्र में जहां कांग्रेस की अगुआई में मनमोहन सिंह की सरकार है, वहीं उत्तर प्रदेश में मायावती की बसपा की सरकार है. क्या मायावती सरकार इस बार भगवा ब्रिगेड को प्रदेश में घुसने की इजाज़त देगी, जबकि पूर्व में केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार होते हुए भी एक लाख संतों ने कभी पैदल मार्च नहीं किया और न ही मंदिर निर्माण की सुधि आई. उस समय तो भाजपा के सांसद लोकसभा में बैठकर सत्तासुख भोगने में ही लगे रहे. और तो और, साधु-संन्यासी भी भाजपा के पूरे पांच साल के शासनकाल में मंदिर मुद्दे को लेकर न तो कोई प्रचार किया और न ही कोई आंदोलन चलाया. उस समय केवल एक ही आंदोलन ख़ूब फला-फुला. वह यह कि पूरे भारत में राम मंदिर निर्माण को लेकर कई समितियां बरसाती मेढ़क की तरह पैदा हो गईं. उन समितियों ने जनता के बीच हिंदुत्व की रक्षा और राम मंदिर निर्माण के नाम पर ख़ूब धन बटोर गईं.इस सवाल के जबाब में श्री वेदांती ने माना कि अयोध्या में राम जन्मभूमि न्यास,....




पूरी ख़बर के लिए पढ़िए चौथी दुनिया