चौथी दुनिया पढ़िए, फैसला कीजिए

बुधवार, 9 दिसंबर 2009

रिपोर्ट पेश न होना राज्यसभा का अपमान

संतोष भारतीय


रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को सदन में न रखवा पाने वाले राज्यसभा के सदस्य क्या शक्तिहीन और निर्वीर्य हो गए हैं? क्या राज्यसभा जनता के कमज़ोर वर्गों के लोकतांत्रिक अधिकारों का संरक्षण करने में असफल रहने के कारण अपनी सार्थकता खोती जा रही है? राज्यसभा सर्वशक्तिमान है. राज्यसभा में देश के चुने हुए बुद्धिजीवी, लोकतंत्र के प्रहरी माने जाने वाले नागरिक, संविधानविद्‌, वरिष्ठ व्यक्ति जो लोकसभा या राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं, सदस्य होते हैं. उनके चुनाव में यद्यपि राजनैतिक दलों की भूमिका होती है, पर माना जाता है कि देश की बुनियादी समस्याओं पर उनका रुख़ कमोबेश एक जैसा ही होगा और वे दलों के दलालों की तरह नहीं, देश के लोकतंत्र के प्रहरी और जनता के हितों के पहरुओं की तरह काम करेंगे.यह सर्वशक्तिमान राज्यसभा कमज़ोरों का जमावड़ा बन गई है. देश के ऐसे लोगों के हितों की रक्षा नहीं कर पा रही है, जिनके पास आवाज़ उठाने की ताक़त नहीं है. रंगनाथ मिश्र कमीशन का गठन सच्चर कमीशन से पहले हुआ था. इसके टर्म ऑफ रिफरेंस में सुप्रीम कोर्ट के कहने पर अन्य धर्मों में दलितों की पहचान जुड़ा था. ईसाई संगठन सुप्रीम कोर्ट गए थे कि उनके दलितों को भी आरक्षण की सुविधा मिले, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला लिया था. रंगनाथ मिश्र कमीशन का गठन कमीशन ऑफ इंक्वायरी एक्ट के तहत हुआ था......





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बुंदेलखंड बेबस और बदहाल है

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
बुंदेलखंड में लोग ज़िंदगी जीते नहीं, ढोते हैं. प्रकृति और व्यवस्था दोनों ही उनकी कड़ी परीक्षा लेती हैं. ब़ंजर जमीन, पानी की कमी, बेरोजगारी, विकास योजनाओं का अभाव और सरकारी-प्रशासनिक उपेक्षा ने यहां लोगों का जीना मुहाल कर रखा है. हद तो यह कि उन्हें मिलने वाली मदद भी सियासी दांवपेंच में उलझ कर रह जाती है. बुंदेलखंड के चित्रकूट मंडल की धरती का दर्द बहुत ही गहरा है. हर ओर यहां सिर्फ और सिर्फ सिसकियां ही सुनाई देती हैं. यहां प्रकृति रो रही है, लोग रो रहे हैं, पूरा परिवेश रो रहा है. उत्तर प्रदेश के सात जिलों में फैले बुंदेलखंड में लोग आज भी जल, जंगल और जमीन के लिए तड़प रहे हैं. महिलाओं, दलितों और वंचितों की जिंदगी तो बस बोझ बनकर रह गई है. रोजी-रोटी और पानी की समस्या इतनी विकट है कि हर साल केवल इसी वजह से हजारों लोगों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ता है. सामंतवाद यहां अभी भी जिंदा है. गरीब, बेबस और लाचार लोगों के साथ यहां कानून भी सिसकियां भरता नजर आता है....

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राज्यसभा में चौथी दुनियाचौथी.....


रूबी अरुण
राज्यसभा में चौथी दुनियाचौथी दुनिया ने रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसमें अल्पसंख्यकों में दलितों को आरक्षण देने की अनुशंसा की गई है. रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद राज्यसभा में विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े सांसदों ने इसके लीक होने पर सरकार को आड़े हाथों लिया और इसे सदन के पटल पर रखने की जोरदार मांग की. उस दिन राज्यसभा में हुई गतिविधियों पर केंद्रित है यह रिपोर्ट. सर, मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि जितनी कमेटियां बनी हैं, चाहे रंगनाथ कमेटी हो, लिब्रहान हो, चाहे सच्चर हो या श्रीकृष्ण कमेटी हो, ये सभी कमेटी सरकार ने बनाई हैं, लेकिन बनाकर इसको संग्रहालय में रख लिया. इसका अनुपालन नहीं हो पा रहा है. अगर लिब्रहान कमेटी की रिपोर्ट इंडियन एक्सप्रेस में छपी होने के बाद सरकार मजबूर हो गई है कि सदन में रखे तो आज चौथी दुनिया में भी रंगनाथ कमीशन की रिपोर्ट निकल गई है. अगर इसे भी सरकार अपने मन से दो चार दिनों में नहीं पेश करती है तो फिर वही दृश्य होगा जो इंडियन एक्सप्रेस में लिब्रहान कमीशन के बारे में छपने के बाद हुआ है. इसके लिए फिर हम लोगों को जिम्मेवार नहीं ठहराया जाए. अगर चौथी दुनिया हिंदी के अखबार में निकला है...
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भारत ईरान के ख़िला़फ क्यों ?


राहुल मिश्र
परमाणु डील पर भारत और अमेरिका के बीच चल रहे रगबी खेल में भारत को एक बार फिर से मुंह की खानी पड़ी. भारत सरकार को इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (आईएईए) में ईरान के ख़िला़फ अपना वोट दर्ज़ कराना पड़ा. अमेरिका की पहली राजकीय यात्रा से लौटते व़क्त प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बराक ओबामा प्रशासन की ओर से एक सा़फ हिदायत दी गई. यह हिदायत अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेम्स जोंस ने भारत सरकार को सुझाव के तौर पर दी. जोंस ने अपने सुझाव में कहा कि भारत को ईरान के परमाणु कार्यक्रम मामले में अपना रु़ख सा़फ करना चाहिए, क्योंकि ईरान पर भारत का दृष्टिकोण यह तय करेगा कि अप्रैल 2010 में राष्ट्रपति बराक ओबामा अपनी भारत यात्रा के दौरान परमाणु डील पर क्या सौगात परोसने वाले हैं....



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राज्यसभा में चौथी दुनिया


रूबी अरुण
आठ दिसंबर, 2009 की सुबह. राज्यसभा के माहौल में एक अनकही सी कसमसाहट दिख रही है. सभापति उपराष्ट्रपति हामिद अली अंसारी के कक्ष में बैठे कुछ सांसदों में बेचैनी का आलम है. उनके हाथों में साप्ताहिक हिंदी अख़बार चौथी दुनिया की वे प्रतियां हैं, जिसमें अख़बार के प्रमुख संपादक संतोष भारतीय ने राज्यसभा के सांसदों के लिए नाकारा, कमज़ोर और नपुंसक जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है. चूंकि राज्यसभा सांसद अपनी पुरज़ोर कोशिशों के बावज़ूद दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों को आरक्षण देने संबंधी अनुशंसाओं वाली रिपोर्ट को राज्यसभा में पेश नहीं करा सके, लिहाज़ा संतोष भारतीय ने सांसदों को इन विशेष शब्दों से विभूषित कर दिया. शब्दों की तासीर ने सांसदों के ज़हन में इतनी तिलमिलाहट भर दी कि जद यू के राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी, राजद के सांसद राजनीति प्रसाद, लोजपा के सांसद साबिर अली और भाकपा के सांसद अजीज़ पाशा ने संतोष भारतीय के ख़िला़फ विशेषाधिकार हनन का नोटिस तक दे दिया. उनकी नाराज़गी अ़खबार से तो थी ही, पर उससे ज़्यादा गुस्सा सरकार पर था कि वह जानबूझ कर सांसदों को ज़लील करा रही है. अगर सरकार चाहती है कि सांसदों पर ऐसी तोहमत न लगे तो उसे तुरंत रंगनाथ मिश्र कमीशन पर संसद में बहस कराना होगा. सभापति के कमरे में इस पर रस्साकशी जारी थी. जदयू सांसद अली अनवर बेहद ख़फा अंदाज़ में सभापति से कह रहे थे कि वह आज इस मसले को उठाना चाहते हैं, सभापति इस बात की इजाज़त दें. तभी वहां मौजूद कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला इस मुबाहिसे में द़खलअंदाज़ी कर
बैठते हैं. वह कहते हैं कि चौथी दुनिया कौन सा ऐसा बड़ा अख़बार है कि जिसमें छपी बातों से आप इतने परेशान हो गए हैं. अरे छोटा-मोटा अख़बार है. हज़ार प्रतियां भी नहीं बिकतीं. दरअसल यहां राजीव शुक्ला की भी अपनी मजबूरियां थीं. सरकार का नुमाइंदा होने की वजह से भला उन्हें यह कैसे मंजूर होता कि उस रिपोर्ट पर सदन में बहस हो, जो सरकार को मुश्किलों में डाल दे. ख़ैर राजीव शुक्ला की बातें सुन रहे भाजपा नेता कलराज मिश्र से रहा नहीं गया. कलराज मिश्र चौथी दुनिया के पुराने पाठक रहे हैं और इसकी ताक़त से भी वाक़िफ हैं. उन्होंने राजीव शुक्ला की बात काटते हुए कहा कि आप ग़लत तथ्य मत रखें. चौथी दुनिया अख़बार और इसके संपादक संतोष भारतीय कोई गुमनाम सी चीज़ नहीं हैं. यह अख़बार बेहद उसूल वाले समाचारपत्रों में शुमार किया जाता रहा है.

इस दरम्यान अली अनवर अंसारी अपनी मांगों को दोहराते रहे. हार कर सभापति उपराष्ट्रपति हामिद अली अंसारी ने अली अनवर से कहा कि कम से कम प्रधानमंत्री कार्यालय मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को तो आने दें, पर अली अनवर और उनके साथियों ने तो जिद ठान ली थी.उन्होंने आख़िरी वार किया कि अगर सभापति अनुमति नहीं देंगे तो वे लोग सदन नहीं चलने देंगे. अब तो सभापति को मानना ही था. उन्होंने अली अनवर से कहा कि ठीक है, प्रश्नकाल में आप अपनी बात सदन में रख सकते हैं. सदन में घड़ी की सूइयों ने जैसे ही 12 बजाए, राज्यसभा सदस्यों ने हंगामा शुरू कर दिया. लोकजन शक्ति पार्टी के सांसद साबिर अली चौथी दुनिया की प्रतियों के साथ वैल में चले आए. वह बेहद उद्वेलित थे. उनका कहना था कि सरकार राज्यसभा सांसदों को बेइज्जत करा रही है. सरकार की लापरवाही के कारण उनकी.....

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पाकिस्तान में आर्थिक सुधार के लिए राजनीतिक सुधार जरूरी

अकदस वहीद

1980 के दशक के अंत से ही पाकिस्तान में उदारीकरण की नीति तेज़ी से लागू की जाने लगी. निर्यात पर लगे टैक्स को कम किया गया और व्यापार पर लगे प्रतिबंधों को बिना देर किए वापस ले लिया गया. पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था के शुरुआती दिनों को एक कमज़ोर औद्योगिक ढांचे के साथ कृषि क्षेत्र के वर्चस्व और एक आधारभूत संरचना की नामौजूदगी के तौर पर वर्गीकृत किया जा सकता है. इन सबके परे पाकिस्तान अस्थिर अर्थ-राजनीति का भी शिकार रहा. लिहाजा, शुरुआती दिनों में बनाई गई नीतियों में एक मज़बूत औद्योगिक ढांचा बनाने की कोशिशों पर ज़ोर दिया गया. इस कोशिश में पाकिस्तान ने व्यापार में घरेलू बाज़ार को सुरक्षित रखने के लिए कई प्रतिबंध लगाए. साठ के दशक में पाकिस्तान के औद्योगिक ढांचे की नींव रखी गई, जिसके चलते कई बड़ी-ब़डी उत्पादन इकाइयों को लगाया गया, लेकिन उनमें से कई इकाइयां घरेलू बाज़ार को सुरक्षित रखने के अपने मकसद में ज़्यादा कारगर नहीं हो सकीं. इस विफलता के चलते देश में आयात ब़ढाने के लिए कई क़दम उठाए गए. इनमें एक्सचेंज रेट को पुनर्गठित करना, आयात पर बोनस और उन उद्योगों को क्रेडिट देना शामिल था, जिनमें आयात ब़ढाने की क्षमता थी. पाकिस्तान सरकार के इस क़दम से देश में औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ 1960 के दशक में आयात के आंकड़ों में का़फी इज़ाफा हुआ. इसके बावजूद 1970 के दशक में औद्योगिक विकास को लगाम लग गई, जिसकी अहम वज़ह औद्योगिक क्षेत्रों का राष्ट्रीयकरण करना था. हालांकि सरकार ने कई विभिन्न इकाइयों का राष्ट्रीयकरण किया. इसके अलावा सरकार ने आयात ब़ढाने के लिए उदारीकरण की दिशा में तीन अहम क़दम उठाए, जिनमें 1972 में पाकिस्तानी रुपये की कीमत 57 प्रतिशत कम करना, आयात के लिए दिए जा रहे बोनस की समाप्ति और देश में लाइसेंस राज पर लगाम आदि शामिल हैं. इन फैसलों से पाकिस्तान के आयात में वृद्धि हुई और यह वृद्धि खासतौर पर पाकिस्तान में ही निर्मित उत्पादों में हुई.



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बिहार नीतीश कुमार का या लालू यादव, राम विलास पासवान का

संतोष भारतीय

क्या नीतीश कुमार ने आलोचना सुनना बंद कर दिया है? उनके साथियों का कहना है कि अगर उन्हें मनमा़िफक बात न कही जाए तो वे नाराज़ हो जाते हैं. जिन नीतीश कुमार को हम जानते हैं, वे ऐसे नहीं थे. अभी भी बिहार का एजेंडा तय करने की ताक़त उनमें है. अगर वे यह कर पाए तो बिहार फिर उनका है, और अगर लालू यादव और राम विलास पासवान ने एजेंडा तय किया तो बिहार उनका होगा, नीतीश कुमार का नहीं.नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं. इसी महीने उन्होंने चार साल पूरे किए हैं और चाहते हैं कि अगले वर्ष जब वे विधानसभा चुनाव में जाएं तो उन्हें फिर जीत हासिल हो. नीतीश ने हाल में सत्रह सीटों के लिए हुए उपचुनाव में केवल तीन पर जीत हासिल की, पंद्रह में वे हार गए. दो सीटें भाजपा के पास गईं. कह सकते हैं कि नीतीश कुमार को पांच सीटें मिलीं. हारे तो वे लालू यादव और राम विलास पासवान के गठजोड़ की वजह से, लेकिन एक कारण और था जिसके लिए नीतीश कुमार की तारी़फ की जानी चाहिए. वह कारण था सांसदों और विधायकों के रिश्तेदारों टिकट न देना. कम से कम नीतीश कुमार ने परिवारवाद के खिला़फ कार्यकर्ताओं के लिए अवसर बनाने के लिए जो साहस दिखाया, वह प्रशंसनीय है. यह अलग बात है कि उन्हीं की पार्टी के उन लोगों ने चुनाव में धो़खा दिया, जो अपने बेटे या अपनी पत्नी को चुनाव लड़ाना चाहते थे. लेकिन केवल एक यही वजह नहीं थी नीतीश कुमार के दल जनता दल (यू) की हार की. कई वजहें और रहीं, पर चार साल पूरे होने पर पहले उन पर नज़र डालें, जो अच्छे कामों की श्रेणी में आते हैं...



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