चौथी दुनिया पढ़िए, फैसला कीजिए

शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

सीआईए और मोसाद की हिंदुस्तान पर बुरी नजर

रूबी अरुण
यह भारत को तोड़ने की बेहद ख़ौफनाक साज़िश है. जिसे रच रही हैं विश्व की दो सबसे खतरनाक खु़फिया एजेंसियां. मक़सद है हिंदुस्तान में गृहयुद्ध का कोहराम मचाना. यहां की ज़म्हूरियत को नेस्तनाबूद करना. संस्कृति और परंपराओं को दूषित-संक्रमित करना, ताकि इस देश का वजूद ही खत्म हो जाए. इसके लिए निशाने पर हैं देश की अज़ीम ओ तरीम 35 हस्तियां. इन दोनों ख़ु़फिया एजेंसियों के एजेंट्‌स न्यायाधीशों, राजनीतिज्ञों, मंत्रियों, नौकरशाहों एवं शीर्ष पत्रकारों की दिन-रात निगरानी कर रहे हैं. यहां तक कि अपने बेहद निजी पलों में भी ये 35 हस्तियां मह़फूज नहीं हैं. जासूसी करने वाले एजेंट्‌स के नाम हैं-ई जासूस, जो बग़ैर दिखे और बिना किसी कैमरे या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के शयनकक्षों तक में घुसकर अपना जाल बिछा चुके हैं. देश की सभी अहम पार्टियों के शीर्ष नेताओं की हरकतें, उनकी बातचीत सहित कुछ भी, इन ई-जासूसों की नज़रों से छुपा नहीं है. सीआईए और मोसाद मिलकर भारत के खिला़फ इस षड्‌यंत्र को अंजाम दे रहे हैं. ज़रिया बना है इंटरनेट. फेसबुक, ऑरकुट, जीमेल, याहूमेल, टि्‌वटर सब पर पैनी नज़र है. अमेरिकी खु़फिया एजेंसी सीआईए ने 20 मिलियन डॉलर निवेश करके इन-क्यू-टेल नाम की एक कंपनी......

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शिक्षक बहाली में भ्रष्टाचार से शिक्षा चौपट

सरोज सिंह
जाका गुरु अंधला, चेला खरा निरंध. अंधे-अंधे ठेलिया, दोनों कूप पड़ंत…! कबीर की यह पंक्ति बिहार की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर बिलकुल सही बैठती है. राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आंकड़ों में चाहे जितनी शेखी बघार लें, लेकिन यह एक बड़ी सच्चाई है कि ग़लत बहाली नीति के कारण राज्य की बुनियादी शिक्षा का स्तर तेज़ी से गिर रहा है और चौपट होने के कगार पर है. पहले झटपट बहाली ने, फिर उसके बाद परीक्षा ने तो और भी बेड़ा गर्क कर दिया है. राज्य के कई निजी स्कूलों में एक तरफ जहां अंतरराष्ट्रीय मानक स्तर की प़ढाई कराई जा रही है, वहीं दूसरी तरफ सरकारी स्कूलों में अनिवार्य शिक्षा के नाम पर स़िर्फ खानापूर्ति की जा रही है. यहां के ज़्यादातर स्कूलों की स्थिति यह है कि भवन है, तो शिक्षक नहीं, शिक्षक है, तो.......

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रुचिका प्रकरणः अपराधी को देर से नाममात्र की सज़ा

रवि किशोर
रुचिका गिरहोत्रा के साथ अभद्रता, जिसे बाद में जिंदगी समाप्त करने को मजबूर होना पड़ा था, के मामले में हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक एस पी एस राठौर को मिली छह माह के कारावास की सज़ा के बारे में बस यही कहा जा सकता है कि दोषी को एक शर्मनाक कृत्य के लिए जो सज़ा मिली है, वह देर से मिली है. दूसरी बात यह है कि उसकी सज़ा अपराध की दृष्टि से बिल्कुल कमतर है. ग़ौर करने वाली बात यह है कि मुजरिम हरियाणा राज्य में क़ानून को लागू करने वाली एजेंसी पुलिस का प्रमुख ओहदेदार रह चुका है. इस पूर्व पुलिस महानिदेशक को केवल छह माह क़ैद की सज़ा ही मिली, क्योंकि 150 साल से भी ज़्यादा पुरानी भारतीय दंड संहिता में कई ख़ामियां और कमियां हैं. वास्तव में भारतीय दंड संहिता में बच्चों के साथ अभद्रता को लेकर कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है. इस शर्मनाक घटना के बाद एक बार फिर से यह बात सामने आई कि किस तरह.......

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ग्रामीण संस्कृति की झलक नाबार्ड हाट में दिखी

गांधी जी बड़े उद्योगों के विकास में नहीं, बल्कि लघु एवं हस्तशिल्प के विकास में विश्वास रखते थे. उनका मानना था कि छोटे उद्योगों के विकास से ही गांव में समृद्धि आ सकती है, लेकिन यह दुख की बात है कि देश की आज़ादी के बाद गांधी के इस सपने को साकार करने की कोशिश नहीं की गई. नतीजा यह है कि आज़ादी के बाद बिहार में स्थापित कई बड़े उद्योग बंद हो गए, लेकिन मिथिला पेंटिंग एवं यहां के कई हैंडीक्राफ्ट्‌स आज दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं. ये बातें बाल श्रमिक आयोग के अध्यक्ष रामदेव प्रसाद ने 22 दिसंबर को गांधी मैदान में स्वयंसेवी संस्था अम्बपाली की ओर से आयोजित नाबार्ड हाट के उद्‌‌घाटन करते हुए कहीं. इसके उद्घाटन के लिए राज्य के.....

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आंकड़ेबाज़ी नहीं, विकास कीजिए

संध्या पांडे
किसी भी राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले आंकड़े हमेशा विकास की एक अकल्पनीय कहानी होते हैं. इनमें सत्यता का प्रतिशत यह तय करता है कि सरकार की नीयत नागरिकों के प्रति कितनी सा़फ है. मध्य प्रदेश सरकार द्वारा करोड़ों रुपये के विज्ञापनों के माध्यम से अब तक जारी किए गए आंकड़े ज़मीनी हक़ीक़त से कहीं दूर हैं. भाजपा इस सरकारी प्रचार को यदि सही मानती है तो यह भविष्य के अंधेरे की ओर एक संकेत साबित हो सकता है. केवल सपने दिखाने और झूठे वायदे करने से राष्ट्र-समाज का विकास संभव नहीं है और वह भी उस समय, जबकि सरकारी अमला अपने निजी हित साधने में लगा हो.

राज्य में सरकारी प्रचार तंत्र ने महीनों तक शोर मचाया कि हर रोज 8 किलोमीटर सड़क बन रही है. पिछले पांच वर्षों में जितनी सड़कें बनीं, उतनी पिछले 50 वर्षों में नहीं बनीं. लेकिन, राजधानी भोपाल के आसपास कई गांव ऐसे हैं, जहां सड़क का नामोनिशान तक नहीं है. कुछ गांवों में तो आज भी आदि मानव सभ्यता के नज़ारे दिखाई देते हैं.....

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आपके जनप्रतिनिधि ऐसे हैं

शशि शेखर
झारखंड राज्य के गठन के अभी महज़ नौ साल ही हुए हैं. इन नौ सालों में अब तक यहां छह सरकारें बदल गईं और सातवीं बन चुकी है. एक के बाद एक कई सरकारें बनने के बाद भी झारखंड और झारखंड के लोगों की तक़दीर नहीं बदल सकी. बेहतर सुविधाओं की कौन कहे, वहां के लोग तो अभी बुनियादी सुविधाओं के लिए भी तरस रहे हैं. अलबत्ता, झारखंड में एक निर्दलीय विधायक से मुख्यमंत्री बने मधु कोड़ा और उनके जैसे कई लोग हज़ारों करोड़ रुपये की संपत्ति कामालिक ज़रूर बन बैठे. आ़खिर खनिज संपदाओं से भरे इस छोटे राज्य की आम जनता की आर्थिक बदहाली की वजह क्या है? ज़ाहिर है, शर्बत में चीनी की तरह ही झारखंड की राजनीति में भ्रष्टाचारी और अपराधी कुछ इस तरह से घुल-मिल चुके हैं, जिन्हें अलग कर पाना नामुमकिन-सा हो गया है. बावजूद इसके, झारखंड चुनाव में इस बार भी भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं बन सका. पिछले चुनाव की तुलना में इस बार कहीं अधिक बाहुबली, दागी और धनबली चुनाव जीत कर, झारखंड विधान सभा की शोभा बढ़ाने आ पहुंचे हैं. अगले पांच सालों तक, अगर सब कुछ ठीक रहा तो, झारखंड की जनता पर शासन करने वाले इन विधायकों और मंत्रियों के बैंक बैलेंस में भी ज़बर्दस्त इजाफा होने से इंकार नहीं किया......

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उत्तर बंगाल के आदिवासी टकराव के मूड में

विमल राय
उत्तर बंगाल की हरे सोने वाली धरती डुआर्स में बवाल मचा है. गोरखालैंड की आग से निकलती चिंगारियां हरी पत्तियों को झुलसाने लगी हैं. विमल गुरुंग इस आदिवासी बहुल इलाक़े को गोरखालैंड के ऩक्शे में शामिल करना चाहते हैं, जबकि यहां के बहुसंख्यक आदिवासी जैसे हैं-जहां हैं के आधार पर बंगाल में ही रहना चाहते हैं. बंद चाय बागानों की वजह से इस इलाक़े में पहले से ही भुखमरी के हालात हैं,उस पर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो)के पथावरोध आंदोलन ने जले पर नमक रगड़ने का सिलसिला शुरू किया है. इस आंदोलन से चाय की ढुलाई भी ठप है और पर्यटन के साथ-साथ तमाम आर्थिक गतिविधियां रुक गई हैं. साल के आ़खिरी दिन का सूरज भी तनाव के माहौल में ही डूबा. थोड़ी भी उम्मीद की लालिमा नहीं दिखी. एक तरफ़ जहां दार्जिलिंग में बर्फ़ पड़ी, वहीं मैदानी इलाक़े में राजनीतिक टकराव की गर्मी बढ़ी. राजमार्गों पर अवरोध आंदोलन कर रहे गोजमुमो कार्यकर्ताओं ने मालबाज़ार में एक एंबुलेंस के ड्राइवर एवं खलासी को पीटा तो सिलीगुड़ी और डुआर्स के बंगाली संगठनों ने दार्जिलिंग जाने वाले तीनों रास्तों को रोक दिया. नाराज़ विमल गुरुंग ने तुरंत 2 जनवरी को बंद का आह्वान कर......

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जन सुनवाई का सामना क्यों जरूरी?

आदियोग
छत्तीसगढ़ के राज्यपाल नरसिंहन ने कभी नहीं चाहा कि केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम सात जनवरी की दंतेवाड़ा जन सुनवाई में हिस्सा लें. इस बात का गवाह है प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखा गया उनका वह पत्र, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री से यह कहा कि गृहमंत्री जैसे अति विशिष्ट शख्स के दौरे से माओवादियों के ख़िला़फ जारी अभियान में रुकावट पैदा होगी. उनकी इस सतर्कता की वजह शायद यह भी हो सकती है कि वह इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशालय से सीधे रायपुर राजभवन पहुंचे हैं और अभी तक उसी पुराने मिजाज़ में हैं. लेकिन ऐसा पहली बार देखा गया, जब किसी राज्यपाल ने केंद्रीय गृहमंत्री से राज्य का दौरा न करने को कहा हो. सनद रहे कि कोई दो माह पहले चिदंबरम खुद ही कह चुके थे कि वह जन सुनवाई में शामिल हो सकते हैं. दंतेवाड़ा में गांधीवादी कार्यकर्ता हिमांशु कुमार का उपवास गत 26 दिसंबर को शुरू हुआ था. उन्हें देश के विभिन्न जन संगठनों और अभियानों का समर्थन मिला. उपवास को आत्मावलोकन की प्रक्रिया बताते हुए उन्होंने कहा कि अब तक की उनकी कोशिशें आदिवासियों की मदद नहीं कर......

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शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

रूबी अरुण


संप्रग सरकार ग्रामीणों को रोज़गार उपलब्ध कराने की कई योजनाएं चला रही है, इस योजना का सारा दारोमदार ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्रालय पर है. इस मंत्रालय पर बहुत बड़ी ज़िम्मेवारी है. सीपी जोशी इस मंत्रालय के मंत्री हैं. सरकारी योजनाओं के ज़रिए पंचायतों का विकास और संप्रग सरकार की नरेगा जैसी पायलट प्रोजेक्ट में भारी संख्या में अनियमितताओं की खबर आ रही है. सीपी जोशी यह दावा करते हैं कि वह सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बहुत क़रीबी हैं. शायद इसकी दुहाई देकर ही वह मंत्रालय के कामकाज पर कम ध्यान देते हैं. सेलिब्रिटी राजनेता बनने की चाहत रखने वाले सीपी जोशी की दिलचस्पी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की राजनीति में ज़्यादा है! उन्होंने हाल ही में राजस्थान क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष पद का चुनाव जीता है. उनके पास ग्रामीण विकास और सरकारी योजनाओं के लिए ज़्यादा व़क्त नहीं बच पाता है. इन योजनाओं का रिश्ता देश के ग़रीब, मज़दूर और गांव में रहने वाली भोलीभाली जनता से है. इसलिए देश की अति महत्वपूर्ण योजनाओं के प्रति उनकी उदासीनता चिंता की बात है. क्या राहुल गांधी जी का ऐसे मंत्री पर ध्यान नहीं जाता?
जोशी के कार्यभार संभालने के बाद से देश के लगभग उन सभी राज्यों से जहां नरेगा प्रभावी है, शिकायतों का अंबार लगा है. पंचायत स्तर पर भरपूर लूटखसोट मची है. बिहार जैसे राज्यों से मज़दूरों का पलायन फिर ज़ोर पकड़ चुका है. ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज मंत्री सी पी जोशी पर यूपीए सरकार की सबसे मज़बूत योजना नरेगा यानी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना की ज़िम्मेदारी है. यही वह योजना है, जिसकी मार्केटिंग करके कांग्रेस दोबारा सत्ता हासिल कर सकी. ज़ाहिर है इस योजना में कोई भी कमी या शिकायत न केवल यूपीए सरकार के कामकाज के रिपोर्ट कार्ड को खराब करती है, बल्कि सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की छवि को भी धूमिल करती है. कहने की ज़रूरत नहीं कि...

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नितिन गडकरी का एजेंडा

मनीष कुमार


ताज तो मिल गया है, लेकिन उसमें कांटे बेशुमार हैं. कुछ तो वक्त की चाल ने पैदा किए हैं और कुछ घर के दुश्मनों ने. चुनौती इसी बात की है कि बीच भंवर में डगमगाती पार्टी की नैया को पार कैसे लगाया जाए.


पिसी फूट, अविश्वास, षड्‌यंत्र, अनुशासनहीनता, ऊर्जाहीनता, बिखराव और कार्यकर्ताओं में घनघोर निराशा के बीच चुनाव दर चुनाव हार का सामना, वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की यही फितरत बन गई है. ऐसे व़क्त में भारतीय जनता पार्टी को नया अध्यक्ष मिला है. 52 साल की उम्र वाले लोगों को अगर युवा कहा जा सकता है तो नया अध्यक्ष युवा है. उम्र न सही, लेकिन वह अपने बयानों, तेवर और राष्ट्रीय राजनीति के अनुभव के नज़रिए से युवा मालूम पड़ते हैं. नितिन जयराम गडकरी, राष्ट्रीय राजनीति में एक नया नाम ज़रूर है, लेकिन महाराष्ट्र का यह नेता भारतीय जनता पार्टी के कई दिग्गज नेताओं को पैवेलियन में बिठाकर खुद अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा है. भारतीय जनता पार्टी देश का प्रमुख विपक्षी दल है. देश में प्रजातंत्र मज़बूत करने के लिए भाजपा का मज़बूत होना ज़रूरी है. क्या गडकरी को इस ज़िम्मेदारी का एहसास है? क्या देश को नेतृत्व देने की दूरदर्शिता और इच्छाशक्ति उनके पास है? यह समझने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि भारतीय जनता पार्टी के नए अध्यक्ष नितिन गडकरी का एजेंडा क्या है?
भारतीय जनता पार्टी के मुख्यालय में आजकल हलचल है. नितिन गडकरी की टीम में कौन-कौन लोग होंगे? किन-किन लोगों को दरकिनार किया जाएगा? नए अध्यक्ष के रास्ते कौन कांटे बिछाएगा? कुछ कहते हैं कि गडकरी में दम है और कुछ लोगों को लगता है कि अरुण जेटली और सुषमा स्वराज के मुक़ाबले गडकरी का क़द का़फी छोटा है. बहरहाल, भाजपा में नई टीम के गठन की जद्दोजहद चल रही है. पंचांग के हिसाब से अभी खड़मास चल रहा है. ज्योतिषीय गणना में इस अवधि को महत्वपूर्ण कार्यों के लिए सही नहीं माना गया है. इसलिए सारे फैसले 14 जनवरी यानी मकर संक्रांति के बाद लिए जाएंगे. फरवरी के पहले और दूसरे सप्ताह में यह पता चल पाएगा कि भारतीय जनता पार्टी के नए अध्यक्ष की टीम में कौन-कौन शामिल हैं.
नितिन गडकरी ने भाजपा की कमान ऐसे व़क्त में संभाली है, जब यह पार्टी कई स्तर पर, कई दिशाओं से बिखर रही है. संघ और भाजपा के रिश्तों को लेकर पार्टी दो धड़ों में बंटी है. एक तऱफ वे लोग हैं, जिनकी पृष्ठभूमि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की है, जो संघ की विचारधारा में विश्वास रखते हैं और जिन्हें भारतीय जनता पार्टी के कामकाज में संघ के द़खल से गुरेज़ नहीं है. दूसरे वे लोग हैं, जो संघ से जुड़े नहीं हैं, जो संघ की विचारधारा और पार्टी के कामकाज में संघ के हस्तक्षेप का विरोध करते हैं. फिलहाल, संघ के समर्थक भाजपा पर भारी हैं. यही वजह है कि...



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गोरखालैंड की कठिन डगर


विमल राय


पृथक गोरखालैंड राज्य के मसले पर 21 दिसंबर को दार्जिलिंग में हुई त्रिकोणीय बातचीत का नतीजा वैसा ही होना था, जैसा कभी भारत-पाक सचिव स्तर की वार्ता का होता था. यानी बातचीत में यही तय हो पाता था कि अगली बातचीत कब होगी. कुछ ऐसा ही हुआ उस दिन. गोरखालैंड के मसले पर 2008 से कुल चार दौर की बातचीत हो चुकी है, पर गतिरोध जस का तस है. दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल पंगु बनी हुई है. इलाक़े को छठीं अनुसूची में शामिल करने की पहल विमल गुरुंग ने बहुत पहले ही ठुकरा दी और गोरखालैंड राज्य बनाने के विरोध में बंगाल के सभी बड़े दल उतर आए हैं.
इन हालात में बंगाल के एक और विभाजन की राह का़फी मुश्किल लगती है. दार्जिलिंग के मैदानी हिस्सों में आमरा बंगाली, बांग्ला ओ बांग्ला भाषा बचाओ समिति और जन जागरण मंच जैसे संगठनों ने भी गोरखालैंड के विरोध में मोर्चा संभाल लिया है. त्रिपक्षीय वार्ता के दिन इनके समर्थकों ने विमल गुरुंग के पुतले एवं पार्टी के झंडे जलाए. एक घमासान का माहौल है, पर शुक्र है कि हिंसा की लपटें नहीं उठ रही हैं.
10 दिसंबर को तेलंगाना मामले पर केंद्र के ऐलान के तुरंत बाद गोरखा जन मुक्ति मोर्चा ने पहाड़ पर अनशन शुरू कर दिया और पार्टी के महासचिव रोशन गिरि की अगुवाई में एक जत्था दिल्ली भी धरना देने पहुंच गया. सिलीगुड़ी और सारे पहाड़ी शहरों में बापू का चित्र रखकर अनशन शुरू हो गया. त्रिपक्षीय वार्ता हेतु बेहतर माहौल बनाने के लिए राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी और गृहमंत्री पी चिदंबरम के आग्रह पर विमल गुरुंग ने बारी-बारी से बंद एवं अनशन कार्यक्रम रद्द कर दिए. गोरखाओं की संस्कृति अलग दिखाने के लिए दार्जिलिंग के सभी लोगों को जातीय वेशभूषा में रहने का फरमान सुनाया गया. केंद्र की ओर से गृह सचिव जी के पिल्लै, राज्य सरकार की ओर से मुख्य सचिव अशोक मोहन चक्रवर्ती और जन मुक्ति मोर्चा की तऱफ से रोशन गिरि एवं पार्टी के दूसरे नेता थे. ग़ौर करने वाली बात यह थी कि दार्जिलिंग में होने के बावजूद विमल गुरुंग इसमें शामिल नहीं हुए. एक बेहतर माहौल में त्रिपक्षीय बातचीत शुरू तो हुई, पर इसमें उन मसलों पर भी फैसला नहीं हो सका, जिनके बारे में अगस्त की त्रिपक्षीय बैठक में तय किया गया था. उस बैठक में दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल का विकल्प तलाशने, दो स्तरीय पंचायत प्रणाली को त्रिस्तरीय बनाने, नगरपालिका चुनाव कराने और लंबित विकास योजनाओं को फिर से शुरू करने के लिए आगे पहल पर सहमति बनी थी. इस बार की बातचीत में गोरखा नेताओं ने अपना एजेंडा अलग गोरखालैंड राज्य ही रखा था. राज्य सरकार के प्रतिनिधियों ने जब बातचीत को इलाक़े के विकास पर ही केंद्रित रखना चाहा तो गोरखा नेताओं ने सा़फ कहा कि...



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मध्‍यप्रदेश और भ्रष्‍टाचार के नज़ारे

संध्या पांडे

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल, इंडिया की रिपोर्ट में मध्य प्रदेश को कई वर्षों से लगातार देश के अतिभ्रष्ट राज्यों की बिरादरी में शामिल किया जाता रहा है, लेकिन राज्य सरकार के कर्णधारों और समाज के ठेकेदारों को अपनी बदनामी का यह प्रमाणपत्र देखकर भी शर्म नहीं आती. इस रिपोर्ट को लेकर सत्ताधारी भले ही आपत्ति करें, असहमति जताएं, लेकिन आएदिन राज्य शासन-प्रशासन में भ्रष्टाचार के मामले जिस प्रकार खुलकर सामने आते हैं, उनसे तो यही पता चलता है कि मध्य प्रदेश इस देश का सर्वाधिक भ्रष्ट राज्य है. प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए पुलिस, लोकायुक्त और दूसरे कई सरकारी विभाग काम करते हैं. कुछ मामले उजागर भी होते हैं, लेकिन उसके बाद भी भ्रष्टाचार बरकरार है. हाल ही में लोकायुक्त-पुलिस ने धार में पदस्थ लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के कार्यपालन यंत्री अजय कुमार श्रीवास्तव के इंदौर स्थित निवास पर छापा मारा और वहां लगभग पांच करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति का पता चला. इंदौर संभाग में शाजापुर के कार्यपालन यंत्री चंद्रमोहन गुप्ता, आर सी चौदाह, मंडला के उपयंत्री आर सी टेमरे, टाइमकीपर रमेश मालवीय, ग्वालियर के कार्यपालन यंत्री के सी अग्रवाल, वी के जैन, रतलाम के कार्यपालन यंत्री तिवारी, ग्वालियर के सहायक यंत्री आर एस भदौरिया, जी एस अग्रवाल, मुरैना के सहायक यंत्री ओ पी गुप्ता और टीकमगढ़ के कार्यपालन यंत्री राजेंद्र प्रसाद सुहाने के अलावा लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के कई छोटे-बड़े अफसरों के खिला़फ घपलों-घोटालों के मामले लोकायुक्त में चल रहे हैं. आम जनता को पानी पिलाने की सेवा देने वाले लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की कार्यशैली इतनी गड़बड़ है कि जनता को चाहे पानी मिले या न मिले, लेकिन अफसरों के घर सदा पैसों की बारिश होती रहती है. 11 लाख रुपये के पत्थर स्कूटर पर ढोए : बाण सागर सिंचाई एवं जल विद्युत परियोजना के निर्माण कार्य में जल संसाधन विभाग के कई इंजीनियरों पर घपलों-घोटालों का आरोप लग चुका है. विभाग के छोटे अधिकारियों ने तो भ्रष्टाचार के नए कीर्तिमान क़ायम कर डाले हैं. बाण सागर परियोजना के कटनी वन मंडल में लगभग 10 हज़ार हेक्टेयर वन क्षेत्र और ग़ैर वन क्षेत्र में भूमि कटाव रोकने के लिए 4.50 करोड़ रुपये की एक परियोजना मंजूर हुई थी. इसके तहत खेतों में मेढ़ बंधन, नदी के रास्ते पर पत्थरों की भराई और वृक्षारोपण के लिए बीज छिड़काव आदि काम होने थे, लेकिन इन सभी कामों...



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विवाद के केंद्र में तिपाईमुख बांध

दिनकर कुमार


एक ओर सरकार बिजली उत्पादन की दुहाई देती है तो दूसरी ओर परियोजना का विरोध करने वाले पर्यावरण को नुक़सान, विस्थापन और पुनर्वास का रोना रोते हैं. बराक और तुईवाई नदी के संगम स्थल पर बनने वाले तिपाईमुख बांध परियोजना का विरोध तो मणिपुर के साथ पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में भी हो रहा है. मणिपुर में छह हज़ार करोड़ रुपये की लागत से प्रस्तावित तिपाईमुख पनबिजली परियोजना के निर्माण का पड़ोसी देश बांग्लादेश विरोध करता रहा है. मणिपुर के ग़ैर सरकारी संगठन भी इसके ख़िला़फ आंदोलन चलाते रहे हैं. विरोध और आलोचना को नज़रअंदाज़ करते हुए हाल ही में इस परियोजना की आधारशिला रखी गई. इससे सा़फ संकेत मिलता है कि केंद्र सरकार इस परियोजना को समय पर पूरा करना चाहती है, लेकिन केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश के बयान से ऐसा लगता है कि परियोजना को अंजाम तक पहुंचने में अधिक व़क्त लग सकता है. जलवायु परिवर्तन पर आयोजित एक कार्यशाला को नई दिल्ली में संबोधित करते हुए रमेश ने कहा कि तिपाईमुख एक मुद्दा नहीं, बल्कि एक अनूठी परियोजना है, जिसका शिलान्यास देश के तीन प्रधानमंत्री कर चुके हैं. शायद यह बांध अधर में लटक सकता है. उन्होंने बांध क्षेत्र की जैव विविधता को स्वीकार करते हुए कहा कि वह चार बार बांध क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं और उन्हें लगता है कि बांध का निर्माण...


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तेलंगाना की नाकामयाबी

रवि किशोर


गृहमंत्री पी चिदंबरम ने बीती 9 दिसंबर को एक अलग तेलंगाना राज्य के गठन की मांग पर सरकार की स्वीकृति की घोषणा की थी. इस घोषणा ने राजनीतिक भूचाल ही खड़ा कर दिया. राज्य को बांटने के मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े विधायकों ने विरोध में सामूहिक तौर पर पद से त्यागपत्र दे दिया. इस विरोध का परिणाम यह हुआ कि सरकार इस मुद्दे पर पीछे हट गई. 23 दिसंबर, 2009 को सरकार ने यह घोषणा कर दी कि तेलंगाना का मसला अनिश्चित समय तक के लिए टाल दिया गया है. सरकार की ओर से यह दलील दी गई कि इस मसले पर नए सिरे से विचार विमर्श की ज़रूरत है. गृहमंत्री का बयान था कि आंध्र प्रदेश में स्थिति का़फी बदल चुकी है. इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों के बीच व्यापक मतभेद हैं, इसलिए राज्य के विभिन्न राजनीतिक दलों और संगठनों से व्यापक विचार विमर्श की ज़रूरत है. भारत सरकार इस प्रक्रिया में संबंधित पक्षों को शामिल करने के लिए ज़रूरी क़दम उठा रही है.
केंद्र सरकार द्वारा इस तरह पलटी मारने से यह बात एक बार फिर से सामने आई कि कुछ भी करने से पहले उसने कोई होमवर्क नहीं किया और घोषणा करने में जल्दबाजी दिखाई. संप्रग नेतृत्व और केंद्र सरकार किस बात से प्रेरित होकर तेलंगाना को अलग राज्य बनाने की प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा को उद्यत हुए, यह बात समझ से...


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समस्याओं को मत टालिए

संतोष भारतीय
सौ रुपये किलो दाल देश में कितने लोग खाते होंगे. चीनी कड़वी हो गई है, लाखों लोगों ने चाय पीना बंद कर दिया है. आटा, चावल एक साथ खाने वाले लोगों की संख्या कम हो रही है. मध्यम वर्ग के निचले तबके ने बाज़ार उठने के बाद बची या फेंकी हुई सब्जी खाना शुरू कर दिया है, क्योंकि सब्जी उनकी पहुंच में नहीं है.


कोई भी शासन करे, उसे समझ लेना चाहिए कि समस्याओं को टालना ख़तरनाक होता है. तेलंगाना एक ऐसी ही समस्या है. इससे पहले जब भाजपा ने छत्तीसग़ढ, झारखंड और उत्तरांचल बनाए थे, तभी लगने लगा था कि राज्यों के बंटवारे की मांग उठेगी और मज़बूती से उठेगी. तेलंगाना के निर्माण का आश्वासन गृहमंत्री चिदंबरम ने चंद्रशेखर राव के आमरण अनशन के दबाव में दिया था, तब उन्हें नहीं लगा होगा कि आंध्र में बंटवारे के ख़िला़फ भी आंदोलन खड़ा हो जाएगा. लेकिन चिदंबरम या सरकार यह तो समझ ही रही होगी कि उत्तर प्रदेश और बंगाल को बांटने की मांग भी उठ खड़ी होगी. अब सरकार परेशानी में है, पर यह परेशानी उसकी अपनी समझ के कारण पैदा हुई है.
छोटे राज्यों के निर्माण के पीछे का मुख्य तर्क है कि इसमें राज्य का विकास होगा और राज्य में भूख, बीमारी में कमी आएगी और रोज़गार के अवसर ब़ढेंगे. हरियाणा ने इस आशा को ब़ढाया भी. वहां का शासन ज़्यादा सक्षम हुआ, प्रशासन ने कार्यक्रम पूरे करने में ताक़त लगाई, लेकिन दूसरे प्रदेशों में यह काम नहीं हो पाया. झारखंड इसका जीवित उदाहरण है, जहां देश में सबसे ज़्यादा अकूत प्राकृतिक संपदा है, जहां के प्राकृतिक संसाधनों को बाहर ले जाकर हवाई जहाज से लेकर परमाणु ईंधन तक बनाया जा रहा है, लेकिन झारखंड में रहने वालों के पास न घर है और न रोटी. अब तो यहां की लड़कियां देश के देह बाज़ारों में बड़ी संख्या में दिखाई दे रही हैं. ऐसा राजनीतिज्ञ तलाशना चिराग लेकर सुई तलाशने जैसा हो गया है, जो ईमानदार हो और जिसे सब ईमानदार मानते भी हों. उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ भी विकसित नहीं हो पाए...
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सोवियत संघ की शातिर ख़ु़फिया एजेंसी केजीबी

चौथी दुनिया ब्यूरो


केजीबी के काम करने का तरीक़ा और उसका मुख्यालय इतने रहस्यमय होते थे कि इसकी जानकारी ख़ु़फिया दुनिया की किसी भी एजेंसी को नहीं होती थी. यहां तक कि केजीबी एजेंट को भी इसके मुख्यालय की जानकारी नहीं होती थी. केजीबी का ख़ौ़फ कुछ ऐसा था कि लोग इसके बारे में बात करने से भी डरते थे. इसी से केजीबी के काम करने के रहस्यमयी अंदाज़ का अनुमान लगाया जा सकता है.


बात उस दौर की है, जब इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थीं. एक दिन प्रधानमंत्री आवास पर एक शख्स एक ब्रीफकेस लेकर आया. उस समय की विपक्षी पार्टियों की मानें तो ब्रीफकेस नोटों से भरा हुआ था. पैसे के लेनदेन का यह सारा खेल उस समय पार्टी के लिए फंड जुटाने वाले नेता ललित नारायण मिश्र के ज़रिए हुआ. मुमकिन है कि प्रधानमंत्री को यह बात मालूम न हो कि यह पैसा कहां से आया और किसने दिया, लेकिन ललित नारायण मिश्र यह बात बख़ूबी जानते थे कि यह सोवियत पैसा है. लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि आख़िर सोवियत संघ से इतना पैसा कांग्रेस पार्टी के लिए क्यों आया? दरअसल, नोटों से भरा यह ब्रीफकेस सोवियत संघ की राजधानी मॉस्को से केजीबी ने भेजा था. यहां एक और सवाल उठता है कि आख़िर केजीबी क्या थी और भारतीय उपमहाद्वीप में उसकी क्या दिलचस्पी थी?
केजीबी यानी कोमितयेत गोसुदारस्त्वजेनोज़ बिज़ोपासनोस्ती या आम हिंदी में कहें तो केजीबी का मतलब है सोवियत राज्य सुरक्षा समिति. लेकिन तीन अक्षरों के इस नाम का सही मतलब दरअसल रहस्य, ख़ौ़फ और आतंक है. अपने समय में केजीबी को दुनिया की सबसे ताक़तवर ख़ु़फिया सर्विस के तौर पर जाना जाता रहा है. इसके आतंक और असर को इसी से समझा जा सकता है कि अपने अंत के कई सालों बाद भी पूर्व सोवियत संघ की इस सीक्रेट एजेंसी का नाम आज भी अंतरराष्ट्रीय ख़ु़फिया षड्‌यंत्रों से जुड़ा है.
बात 1954 की है. उस दौरान यानी 1953 से 1964 तक सोवियत संघ के राष्ट्रपति थे निकिता ख्रुश्चेव. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ की...


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आतंकवाद के खिलाफ भारत-पाकिस्‍तान का एकजूट होना जरूरी

परवेज हुडभाय


सुरक्षा की तमाम कोशिशों के बावजूद हाल के कई हमले तो और भी नाटकीय थे. कुछ दिन पहले की बात है, जब तालिबानी आतंकवादी सुर्ख़ियों में छाए हुए थे. दरअसल इन आतंकियों ने इस्लामाबाद के पड़ोसी शहर रावलपिंडी में अभेद्य कहे जाने वाले पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय पर हमला कर दिया था.भारत और पाकिस्तान भौगोलिक तौर पर अविभाज्य देश हैं, जिन्होंने इतिहास के गर्भ से एक साथ जन्म लिया है. अब नतीजा चाहे कुछ भी हो, इन दोनों देशों का भविष्य हमेशा एक दूसरे से जुड़ा रहेगा. आज इन दोनों देशों में से एक का भविष्य गहरे संकट में है. पठानी कबाइलियों के कट्टरपंथी आतंकवादियों ने मैदानी इलाक़ों और पूरे देश की ओर रुख़ कर लिया है. जबकि यही लोग पहले वज़ीरिस्तान और स्वात के सुनसान पहाड़ी इलाक़ों में अपना अड्डा जमाए रहते थे. पाकिस्तान के हर शहर में लगातार हमले किए जा रहे हैं. आतंक, अपहरण और रोज़मर्रा के आत्मघाती हमलों के ज़रिए चरमपंथियों ने व्यापक तौर पर पाकिस्तानियों की ज़िंदगी बदल दी है. अभी कुछ महीने पहले की बात है, जब पाकिस्तानियों ने राहत की सांस ली थी. स्वात में तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) के ख़िला़फ सेना के सफल अभियान और अमेरिकी ड्रोन हमले में टीटीपी सरगना बैतुल्लाह मेसूद के मारे जाने के बाद कुछ समय तक इस इलाक़े में शांति बनी रही. कुछ अक्खड़ विश्लेषक जो पाकिस्तान के कई निजी चैनलों पर लगातार बकवास कर रहे थे, उनका मानना था कि टीटीपी बहुत बुरी तरह बिखर चुकी है. लेकिन वे सरासर ग़लत थे. टीटीपी लगातार विभिन्न शहरों में धमाके कर रही है, नतीजतन इस्लामाबाद पूरी तरह ख़ौ़फजदा हो चुका है. सड़कों पर यातायात व्यवस्था रेंग रही है, लेकिन सेना अपनी मशीनगनों के साथ आपको ज़रूर नज़र आ जाएगी. यहां बमुश्किल ही रेस्टोरेंट खुलते हैं. हालत यहां तक है कि बाज़ार सुनसान नज़र आते हैं. अभी भी हमलावरों को रोकना मुश्किल हो रहा है. उन्होंने पेशावर शहर को अपने हमलों से पूरी तरह पैरालाइज़्ड कर दिया. दूसरे हमलों के मुक़ाबले कुछ हमले कहीं अधिक बड़े और भयावह थे, लेकिन एक और बड़े हमले के बाद पहले वाले को भुला दिया जाता है. कार में भरे विस्फोटक ने पेशावर के भीड़भाड़ वाले मीना बाज़ार की दुकानों को उड़ा दिया. एक आत्मघाती हमलावर ने इस्लामाबाद में अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक विश्वविद्यालय के गर्ल्स कैफेटेरिया को उड़ाया. लाहौर के पुलिस संस्थान के पास ताबड़तोड़ तीन हमले हुए. खोत में विस्फोटक जैकेट के ज़रिए हुए धमाके से स्कूली लड़कियों को जान गंवानी पड़ी. सुरक्षा की तमाम कोशिशों के बावजूद हाल के कई हमले तो और भी नाटकीय थे. कुछ दिन पहले की बात है, जब तालिबानी आतंकवादी सुर्ख़ियों में छाए हुए थे. दरअसल...
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कुंभ तो हरिद्वार में ही होता है!

डॉ. कमलकांत बुधकर


बधाइयां बांटता और शुभकामनाएं बिखेरता नया वर्ष आ चुका है. उधर केवल ग्यारह दिन पहले ही 20 दिसंबर की आधी रात को देवगुरु वृहस्पति ने आगामी लगभग एक वर्ष के लिए कुंभराशि में प्रवेश कर लिया है. इसका सीधा अर्थ यह है कि अब आकाश के ग्रह नक्षत्र भी धरती वालों को कुंभ स्नान कराने की स्थिति में आने लगे हैं. उधर वृहस्पति कुंभ राशि में प्रविष्ट हुए और इधर हरिद्वार में 2010 के कुंभ के लिए सरकारी कुंभ काल की अधिसूचना जारी हुई. एक जनवरी 2010 से 30 अप्रैल 2010 तक के लिए हरिद्वार घोषित कुंभनगर हो गया!
14 जनवरी को सूर्य उस मकर राशि में प्रविष्ट होंगे, जो संवत्सर मुख कहलाती है. यानी वह संक्रांति, जो पिछले संवत्सर की विदाई का माहौल बनाती है और नव संवत्सर को न्यौता भेजकर उसके स्वागत की तैयारियां भी करती है. तब हवाओं में वासंती गंध घुलने लगती है और खेत-खलिहानों में सरसों एवं टेसू फूलने के दिन आने लगते हैं. प्रकृति अपने सौंदर्य प्रसाधन एकत्र करके सजने लगती है. मादक वसंत होली के रंग बिखेरता हुआ उत्सवधर्मी भारतीयों के दरवाज़ों पर दस्तक देने लगता है. और, ऐसे में उस महापर्व की आहट भी साफ़ सुनाई पड़ने लगती है, जिसके लिए गंगा के तट बारह बरसों तक अपलक प्रतीक्षा में रहते हैं. कहने का अर्थ यह है कि आस्तिक भारतीयों के मन में बसा और मोक्ष का पर्याय माना जाने वाला महाकुंभ आकाशीय रास्तों से धरती पर आ चुका है. हरिद्वार में कुंभ का योग वृहस्पति, जिन्हें देवताओं का गुरु भी माना जाता है, की कुंभ राशि में स्थिति के समय आता है. इस काल का सर्वाधिक पवित्र दिन वह होता है, जब सूर्य मेष राशि में संक्रमित होता है. लेकिन गुरु का कुंभस्थ होना ही अधिक महत्वपूर्ण है. सामान्यत: माना जाता है कि वृहस्पति एक राशि में एक वर्ष तक रहता है और...




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