शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009
मुस्लिम आरक्षण का भविष्य?
रंगनाथ मिश्र कमीशन रिपोर्ट की अनुशंसाओं को लागू करने के मसले पर देश में मौक़ापरस्त सियासत की जो फिज़ां बनी है उससे एक बात तो सा़फ है कि सियासी दलों के लिए देश का दलित मुसलमान उसकी बिसात का बस एक मोहरा है और उनके हक़ ओ ह़ूकूक़ की बात महज़ एक सियासी चाल. इस बहाने सियासतदानों की चाल और चरित्र दोनों सामने हैं.
मुसलमानों और ईसाइयों के आरक्षण के मुद्दे पर हर पार्टी में भ्रम की स्थिति है. इसमें कई पेंच हैं. सबसे बड़ा सवाल यह है कि उन्हें आरक्षण किस कोटे से दिया जाएगा?
इतिहास में ऐसे मौ़के कम ही आते हैं, जब किसी अ़खबार की वजह से सरकार को वह करने को मजबूर होना पड़ता है, जिसे वह किसी भी हाल में करना नहीं चाहती. रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट संसद में पेश होने की घटना सरकार की कुछ ऐसी ही मजबूरी को ज़ाहिर करती है. सरकार के पास रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट २२ मई २००६ से थी. उसने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था. मामला दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों के आरक्षण से जुड़ा होने के कारण विवादास्पद है. सरकार ने चुनावी नुक़सान और फायदे को देखते हुए इसे दबा रखा था. चौथी दुनिया में रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद संसद में हंगामे का सिलसिला शुरू हो गया. चौथी दुनिया की रिपोर्ट की वजह से लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही को कई बार स्थगित करना पड़ा. लगभग सभी पार्टी के सांसदों ने जमकर हंगामा किया और लोकसभा एवं राज्यसभा दोनों ही सदनों में चौथी दुनिया अ़खबार लहरा कर सरकार को रिपोर्ट पेश करने को बाध्य कर दिया...
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इंसाफ की आवाज पर पाबंदी
अपनी मर्ज़ी की मालिक हो चुकी सरकारें खुद के गिरहबान में ताकझांक की इजाज़त भला क्यों देंगी? वह क्यों चाहेगी कि उनके कामकाज की चीरफाड़ हो उनकी नीयत की चिंदी-चिंदी उड़े? ज़ाहिर है, वह तो ऐसी हिमाकत को रोकने की हरसंभव कोशिश करेगी और उसे क़ानून व्यवस्था बनाए रखने की कार्रवाई का ही नाम देगी. विकास के लिए शांति चाहिए और उनके लिए शांति का मतलब मरघटी ख़ामोशी से है.
इसी कड़ी में बस्तर का हाल सुनें. दंतेवाड़ा में 14 से 26 दिसंबर तक पदयात्रा का आयोजन तय था. पदयात्रा के बाद सत्याग्रह का सिलसिला शुरू होना था, जिसका समापन अगली सात जनवरी को जन सुनवाई के रूप में होना था. जन सुनवाई में वित्त मंत्री पी चिदंबरम के शामिल होने की भी चर्चा थी. वह ख़ुद भी ऐसी इच्छा रख चुके थे. 14 दिसंबर से सात जनवरी तक का यह कार्यक्रम बस्तर को जंग का मैदान बनने से रोकने के लिए बनाया गया था...
बुंदेलखंड को राज्य बनाने के नाम पर सियासत
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने केंद्र सरकार के लिए नया सिरदर्द पैदा कर दिया है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर उन्होंने बुंदेलखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की मांग की. बसपा यह मांग कई सालों से कर रही है. मार्च 2008 में मायावती ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सभी क्षेत्रों के समुचित विकास के लिए उत्तर प्रदेश को छोटे राज्यों में बांटने की बात कही थी. उन्होंने दोनों क्षेत्रों के लोगों से अपील की कि वे अलग राज्य बनाने की अपनी मांग केंद्र के समक्ष जोरदार तरीके से रखें. मायावती ने कहा कि यदि केंद्र बुंदेलखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने पर सहमत हो तो वह विधानसभा में इस आशय का प्रस्ताव लाने की कोशिश करें. उन्होंने तर्क दिया कि जनसंख्या और क्षेत्रफल के आधार पर उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का प्रबंधन करने के लिए इसे बांटना ज़रूरी है.खंड-खंड नहीं, अखंड बुंदेलखंड चाहिए. जब तक हमें पूरा बुंदेलखंड नहीं मिलता है, हमारा संघर्ष जारी रहेगा. यह बात बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजा बुंदेला ने चौथी दुनिया से कही. उन्होंने मायावती के बुंदेलखंड को लेने से इंकार करते हुए कहा कि हमें महाराजा छत्रसाल की सीमाओं वाला बुंदेलखंड चाहिए. 1948 में गृहमंत्री सरदार पटेल के साथ एक मसौदे पर बुंदेलखंड के 35 राजा-रजवाड़ों के साथ समझौता हुआ था....
वतन के लिए मर—मिटने का जज्बा
उत्तराखंड की पावन धरती से प्रशिक्षण प्राप्त करके 518 सैन्य अधिकारी राष्ट्रसेवा को समर्पित हुए. मौक़ा था देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी की पासिंग आउट परेड का, जिसमें कुल 536 कैडेटों ने भाग लिया. इनमें 18 विदेशी भी शामिल थे. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में नेपाल के सेना प्रमुख छत्रमान सिंह गुरूंग ने परेड की सलामी ली. उन्होंने कहा कि सैन्य अधिकारी सेना की महान परंपरा को आगे बढ़ाएं. मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों में सुरक्षा का सवाल सभी राष्ट्रों के लिए सबसे अहम हो गया है, इसलिए सेना में शामिल हो रहे हर अधिकारी को इस चुनौती का मुक़ाबला करने के लिए हर समय तैयार रहना होगा.
भारतीय सेना की महान परंपरा की सराहना करते हुए गुरूंग ने कहा कि भारतीय सैन्य अधिकारी सतत समर्पित भाव से उत्कृष्ट सेवाओं द्वारा अपनी विरासत की रक्षा करें. त्याग, बलिदान, समर्पण, देशभक्ति और साहस सेना के मूल्य एवं आदर्श हैं. नए सेनाधिकारी अपने साथियों एवं कनिष्ठों के लिए प्रेरणास्रोत बनें. उन्होंने अपने प्रशिक्षण काल के स्वर्णिम दिनों को याद कर भारतीय सैन्य अकादमी को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सैन्य अकादमी बताते हुए इसकी सराहना की...
यौन पेशे को कानूनी मान्यता देना घातक होगा
जब आप कहते हैं कि यह दुनिया का सबसे पुराना पेशा है और जब आप क़ानून बनाकर इसे ख़त्म कर पाने में अक्षम हैं तो इसे क़ानूनी मान्यता क्यों नहीं दे देते? इससे आप पेशे पर निगरानी रख सकेंगे और इसमें शामिल लोगों का पुनर्वास कर सकेंगे. दिसंबर के पहले सप्ताह में एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह राय ज़ाहिर की. इससे उन करोड़ों यौनकर्मियों के दिलों में उम्मीद जगी है, जो दिन के उजाले में समाज की हिकारत और रात में पुलिस, गुंडों, दलालों एवं मौसियों की चांडाल चौकड़ी का दंश झेलती हैं.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ही ओलेगा तेलिस बनाम बंबई नगर निगम मामले (1985 एसएससी-3ए 535) में यह फैसला सुनाया था कि कोई भी व्यक्ति जीविका के साधन के रूप में जुआ या वेश्यावृत्ति जैसे अवैध व अनैतिक पेशे का सहारा नहीं ले सकता. इसके बावजूद समलैंगिकता पर आए हाल के फैसले और अब यौन पेशे को क़ानूनी मान्यता देने के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट की राय पूरी दुनिया में बदल रही फिजां और बुराइयां रोक पाने में क़ानून की विफलता की ओर इशारा करती है. ज़ाहिर है, कोर्ट की राय से यौन पेशे को क़ानूनी मान्यता देने की बहस फिर शुरू हो गई है. मानवाधिकार संगठनों के साथ-साथ देश के लाखों यौनकर्मी क़ानून बनाने वाली मशीनरी पर दबाव बढ़ाने के लिए सड़क पर उतरने की तैयारी में हैं तो दूसरा खेमा भी अपने पुराने हथियारों से लैस होकर बीच मैदान में डटा है. सवाल यह है कि इस पेशे से जुड़ी 10-12 लाख से ज़्यादा बाल यौनकर्मियों को क्या यह हक़ देना जायज़ होगा? सवाल इसलिए अहम है कि खेलने, पढ़ने और एक आम औरत की तरह पारिवारिक ज़िंदगी जीने के मौलिक अधिकार से महरूम बच्चियां जो काम कर रही हैं, उस पर हम कैसे क़ानून की मुहर लगा सकते हैं? क्या क़ानूनी मान्यता मिलने से यौनकर्मियों की संख्या अचानक बढ़ नहीं जाएगी? बीच बहस में इन सब सवालों की बौछार हो रही है. बेहतर है कि हम दोनों पक्षों की राय जान लें...
मोसाद यानी ख़ौ़फ का दूसरा नाम
महिलाओं का सबसे बड़ा हथियार है सेक्स. इस दौरान इधर-उधर की बातें करना इनके लिए बड़ी समस्या नहीं है, लेकिन इसके लिए भी ख़ास साहस की ज़रूरत होती है. बात स़िर्फ दुश्मन के साथ सोने की नहीं, बल्कि ख़ु़फिया जानकारी हासिल करने की होती है.
इज़रायल का दूसरा सबसे बड़ा शहर है तेल अवीव. यहीं एक ऐसी एजेंसी का मुख्यालय है, जिसे हम मोसाद कहते हैं. मोसाद यानी दुनिया की सबसे ख़तरनाक ख़ु़फिया एजेंसी. मोसाद को क़रीब से जानने वालों की मानें तो यह दुनिया की सबसे ख़ौफनाक क़ातिल मशीन की तरह काम करती है. इस क़ातिल एजेंसी के मुखिया की सोच कैसी होगी, यह सोचकर ही रूह कांप उठती है. यह बात हम यूं ही नहीं कर रहे हैं. अपने पेशेवर क़ातिलाना मिशन की हक़ीक़त का ख़ुलासा ख़ुद मोसाद के मुखिया भी करते हैं. वर्ष 2000 से अभी तक मोसाद की कमान संभाल रहे मीर डागन का बयान हमारी उस बात की तस्दीक करता है, जिसमें हम अभी तक मोसाद के ख़तरनाक, बेरहम और क़ातिलाना मिशन की बात करते आ रहे थे. मीर डागन कहते हैं, जब मैं लेबनान में लड़ रहा था तो उस व़क्त हमारे जेहन में मिशन के अलावा कुछ भी नहीं चल रहा था. हमारा मक़सद स़िर्फ और स़िर्फ एक ही था, दुश्मनों का ख़ात्मा. चाहे इसके लिए किसी भी रास्ते को अख्तियार करना पड़े. मीर डागन अपनी बात कुछ इस तरह समझाते हैं, जो महज़ एक मिसाल नहीं, बल्कि उनकी क्रूर और क़ातिल सोच का नतीजा है. डागन बताते हैं कि लेबनान में एक मिशन के दौरान वह एक घर में घुसे. 1`अंदर घुसते ही उन्होंने ताबड़तोड़ हमला कर दिया. जब उन्होंने गोलियों की बरसात बंद की तो देखा कि एक शख्स के सिर में इतनी गोलियां लगी थीं कि उसका सिर धड़ से अलग हो गया था. उसके शरीर के पास उसकी बीवी और चार बच्चों की लाशें पड़ी हुई थीं. इतनी बेरहमी से हत्या के बावजूद उनके चेहरे पर शिकन की कोई लकीर नहीं थी और न ही अ़फसोस की कोई भावभंगिमा. यानी अपने दुश्मनों के ख़ात्मे के लिए वह औरत और बच्चों को भी नहीं बख्शते थे. मोसाद के मिशन की ज़द में जो कोई भी आएगा, उसका अंजाम भी कुछ इसी तरह या इससे भी ख़ौ़फनाक होगा...
समाज को साई कृपा की जरूरत
साईं बाबा ने अपनी साधना और मानव कल्याण का केंद्र शिरडी की एक टूटी-फूटी मस्जिद को बनाया, जहां एक ओर वह हिंदू संतों की तरह मस्जिद के भीतर धूनी रमाकर बैठते थे, वहीं दूसरी ओर उनकी ज़ुबान पर हमेशा अल्लाह मालिक है का वाक्य रहता था. जातिपात, ऊंच-नीच और तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों का विरोध करते हुए साईं बाबा ने अपने भक्तों के सामने भाईचारे, समानता और प्रेम का आदर्श स्थापित किया. सभी धर्मों के धार्मिक पर्व बाबा और उनकी द्वारका मस्जिद पूरे उल्लास के साथ मनाती थी. उनकी कथनी और करनी में भेद नहीं था. मानव मात्र की सेवा ही उनका परम उद्देश्य था....
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बुजुर्गों के प्रति सभी गैर जिम्मेदार
समाज हो, संगठन हो अथवा फिर सरकार, वरिष्ठ नागरिकों के प्रति किसी का भी रवैया संवेदनशील नज़र नहीं आता. उनके प्रति उपेक्षा का यह भाव संवेदना को उद्वेलित करने वाला है. जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंचे लोगों के संबंध में हम अपना दायित्व क्यों भूल जाते हैं?
सरकार वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल के लिए नीतियां और कार्यक्रम बनाने के क्रम में 80 वर्ष की अवस्था पार कर चुके बुज़ुर्गों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर देती है. वह सभी बुज़ुर्गों को एक समान समूह में रखकर ही उनकी समस्याओं को देखती है. जबकि उम्र के आठवें दशक के पार ज़िंदगी जी रहे लोगों की सामाजिक, आर्थिक, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भिन्न होती हैं. सरकार ने उनकी विशिष्ट ज़रूरतों और बाधाओं को ध्यान में रखकर कोई भी कार्यक्रम कार्यान्वित नहीं कर रखा है. जबकि वियना इंटरनेशनल प्लान ऑफ एक्शन 1982 में इस तथ्य का स्पष्ट उल्लेख है कि बुज़ुर्गों के लिए, ख़ासकर वे बुज़ुर्ग जो एक निश्चित उम्र सीमा को पार कर चुके हैं, नीतियां और कार्यक्रम बनाने में उनकी ज़रूरतों का अलग से ध्यान रखा जाएगा. जबकि बुज़ुर्गों के लिए मैड्रिड इंटरनेशनल प्लान ऑफ एक्शन 2002 अस्सी से ऊपर के बुज़ुर्गों की ज़रूरतों की परवाह नहीं करता. बावजूद इसके कि उनकी ज़रूरतें 60 से 79 वर्ष उम्र समूह की ज़रूरतों से का़फी अलग होती हैं. बुजुर्गो का यह समूह आर्थिक ज़रूरतों के लिए दूसरों पर ज़्यादा निर्भर है. सामाजिक रूप से ज़्यादा कटा हुआ है, मनोवैज्ञानिक रूप से ज़्यादा दमित है और इन्हें सेहत संबंधी एवं व्यक्तिगत देखभाल की ज़रूरत दूसरों से कहीं ज़्यादा होती है...
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अकादमी पुरस्कारों का खेल
साल के आख़िरी दिनों में साहित्यिक हलके में अकादमी पुरस्कारों को लेकर सरगर्मियां तेज़ हो जाती हैं. राजधानी दिल्ली में तो अटकलों का बाज़ार इस कदर गर्म हो जाता है कि तथाकथित साहित्यिक ठेकेदारों की जेब में पुरस्कृत होने वाले लेखकों की सूची रहती है. जहां भी तीन-चार लेखक जुटते हैं, क़यासबाजी का दौर शुरू हो जाता है और गिनती चालू हो जाती है कि किस लेखक की पुस्तक पिछले तीन वर्षों में आई तथा किसका जुगाड़ इस बार फिट बैठ रहा है. किसने अपनी गोटी सेट कर ली है. साहित्य अकादमी और उसके अध्यक्ष को नज़दीक से जानने वालों का मानना है कि इस बार हिंदी लेखक को मिलने वाले पुरस्कार में हिंदी के भाषा संयोजक विश्वनाथ तिवारी की चलेगी. पिछले अध्यक्ष गोपीचंद नारंग के कार्यकाल में उनकी चलती थी और उन्होंने हिंदी के संयोजक एवं वरिष्ठ लेखक गिरिराज किशोर को पुरस्कारों के मामले में पैदल कर दिया था...
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टाइगर वुड्स ने तोड़ा दुनिया का भरोसा
कंगना का संदेश
सोमवार, 21 दिसंबर 2009
वो आठ मिनट जिन्होंने इतिहास रचा-संसद में चौथी दुनिया
लोकसभा की कार्यवाही में चौथी दुनिया और रंगनाथ मिश्र कमीशन रिपोर्ट
लोकसभा और राज्यसभा में इतना अंतर्विरोध क्यों
अली अनवर जदयू के राज्यसभा सांसद हैं और पसमांदा मुसलमानों के नेता हैं. 24 नवंबर को उन्होंने राज्यसभा में चौथी दुनिया की प्रति लहराई और मांग की कि रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट संसद में पेश की जाए, क्योंकि यह रिपोर्ट इस अख़बार में छप गई है. उनका यह भी कहना था कि रंगनाथ मिश्र कमीशन की स़िफारिशों का भी उतना ही महत्व है, जितना लिब्रहान कमीशन की स़िफारिशों का, तब क्यों सरकार दोहरा मानदंड अपना रही है. उसने लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट पेश कर दी, पर रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट पेश नहीं कर रही है. उनका समर्थन तारिक अनवर, अमर सिंह, कमाल अख्तर, एस एस अहलूवालिया, जयंती नटराजन, सीताराम येचुरी और डी राजा ने किया. इनकी इस मांग का, कि जब रिपोर्ट चौथी दुनिया में छप गई है तो उसे संसद में तत्काल पेश किया जाना चाहिए, का समर्थन एन के सिंह, वेंकैया नायडू, राजनीति प्रसाद और प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने भी किया. राज्यसभा दो बार स्थगित भी हुई पर इन सांसदों को, जो हर दल का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, जवाब नहीं मिला.
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चौथी दुनिया की जंग जारी
नवंबर का आख़िरी हफ़्ता. समाजवादी पार्टी में चल रही अंदरूनी खींचतान के दरम्यान कयासों का दौर जारी था. फिरोजाबाद संसदीय चुनाव में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की बहू डिंपल यादव की हार के बाद हुई बयानबाज़ियों ने पार्टी की नींव हिलने के संकेत देने शुरू कर दिए थे. गुज़िस्ता दिनों के साथ मुलायम सिंह और अमर सिंह के अलगाव की ख़बरें ज़ोर पकड़ने लगी थीं. पार्टी कार्यकर्ताओं तक में मुग़ालते के हालात थे. ख़बरनवीसों को किसी सनसनीखेज ख़बर का इंतज़ार था. तभी यह सूचना मिली कि सपा महासचिव अमर सिंह के आवास 27, लोधी स्टेट में एक प्रेस कांफ्रेंस की जा रही है. सभी अख़बार और चैनल वाले टूट पड़े. उन्हें लगा कि आज तो यानी 3 दिसंबर को अमर सिंह यह ऐलान कर ही देंगे कि वह पार्टी छोड़ रहे हैं. पर जब सभी वहां पहुंचे तो नज़ारा चौंकाने वाला था. वहां तो अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव अपने पुराने याराना वाले अंदाज़ में हंसते-बतियाते मिले. ख़ैर कांफ्रेंस शुरू हुई. बात लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट और मुसलमानों के हक़ ओ हक़ूक से शुरू हुई. अचानक मुलायम सिंह और अमर सिंह ने सामने टेबल पर पड़े कुछ अख़बारों को उठाया और उन्हें न्यूज़ चैनल के कैमरों के सामने कर दिया. वह अख़बार था चौथी दुनिया और ख़बर थी
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