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रविवार, 26 जुलाई 2009

ऐसे फैलता है आतंकवाद

के एस राधाकृष्णन

आर्थिक असमानता, बेरोज़गारी, जनसंख्या विस्फोट, सामाजिक बहिष्कार , अतिवाद, नस्लीय अल्पसंख्यकों का दमन, जनजातीय वाद और धार्मिक व राजनीतिक दमन को अगर नहीं सुलझाया गया तो हथियारबंद हिंसा जन्म ले सकती है. चाहे हम इसे उग्रवाद, अतिवाद, आतंकवाद या अलगाववाद कुछ भी कहें. युद्ध की शुरुआत हमेशा आदमी के दिमाग़ में होती है और समान विचारों वाले लोग पूरी दुनिया में रहते हैं. इसी वजह से इसके परिणाम केवल विवाद वाले देश में ही नहीं महसूस नहीं किए जाते, बल्कि उनकी धमक कहीं और भी सुनाई देती है. आतंकवाद, अपराध और ग़ैर अंतरराष्ट्रीय सशस्त्र विद्रोह के बीच की रेखाएं इतनी महीन और धुंधली पड़ गई हैं कि अब हम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद में फर्क़ ही नहीं कर सकते. कई आतंकी अपने उद्देश्य के लिए लड़ते हुए मरना पसंद करते हैं, ताकि उनकी नज़र में जो सच है उसे पाया जा सके. वह महसूस करते हैं कि वह एक वंचित तबके का हिस्सा हैं और सुखद भविष्य की कोई उम्मीद उनके लिए बाक़ी नहीं है. वह अपनी ज़िंदगी दांव पर इसलिए लगाते हैं ताकि उनके हिसाब से दूसरों को भी शांति और भौतिक रूप से समृद्ध जीवन का अधिकार नहीं है.

आस्ट्रिया के राजकुमार की 1914 ई. में सरायेवो में हत्या का मामला पूरी तरह से आस्ट्रिया का आतंरिक मामला था, लेकिन इसकी वजह से पहला विश्व युद्ध शुरू हुआ. दुनिया में आतंकवादी गतिविधियां भारत के साथ ही चीन, सोवियत संघ, वियतनाम, कंबोडिया और दक्षिण कोरिया-उत्तर कोरिया के अलावा इज़रायल-फिलीस्तीन और पाकिस्तान में भी देखी गई हैं. 11 सितंबर 2001 को न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हो या पिछले साल 26 नवंबर को मुंबई के ताज होटल पर हुआ आतंकी हमला, हमारे बच्चों युवाओं और बूढ़ों ने उसे टी.वी. के पर्दे पर लाइव देखा. कई भारतीयों के लिए संसद पर 2001 में हुआ हमला दरअसल हमारे लोकतंत्र पर हमला था. खेलों को पसंद करने वाले लोग 1972 में म्यूनिख ओलंपिक में वह हमला नहीं भूल सकते, जब तथाकथित फिलीस्तीनी जिहादियों ने 11 इज़रायली एथलीटों की हत्या कर दी थी. हालात यहां तक बिगड़ गए थे कि इज़रायल ने श्रृंखलाबद्ध तरीक़े से बम हमला करके सैंकड़ों गुरिल्लों को मार डाला था. मार्च 2009 में लाहौर में श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर रॉकेट लांचर और ग्रेनेड से हमला किया गया. इस वारदात में आठ लोग मारे गए, जबकि कई घायल हो गए थे. सौभाग्य की बात यही रही कि खिलाड़ियों को मामूली चोटें ही आईं.

हथियारों के मामले में तकनीकी विकास ने ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं, जहां आतंकी संगठनों को ताज़ातरीन हथियार क़ब्ज़ाने का मौका मिल जाता है और वे अधिक से अधिक बर्बादी और आतंक फैला सकते हैं. दुर्भाग्य से अब तक व्यापक नरसंहार वाले हथियारों के उत्पादन और संग्रहण तथा इस्तेमाल पर रोक नहीं है. हालांकि कुछेक सदस्य देशों ने उन हथियारों पर नियंत्रण के लिए और परमाणु हथियारों के नियमन के लिए संधियां भी की हैं. इस लक्ष्य को पाने के लिए कई तरह के सम्मेलन किए गए हैं. ख़बरें बताती हैं कि पूरी दुनिया में लगभग 36000 परमाणु हथियार हैं. इनमें रूस के पास सबसे अधिक 22,500 हथियार हैं जबकि अमेरिका के पास 12070, फ्रांस के पास 500, चीन के पास 450, ब्रिटेन के पास 380, भारत के पास 65 और पाकिस्तान के पास 25 परमाणु हथियार हैं. इन सबके अलावा दुनिया के 80 देशों ने व्यापक नरसंहार वाले रासायनिक और जैविक हथियार बना लिए हैं. अमेरिका ने 1200 से अधिक परमाणु परीक्षण किए हैं तो रूस ने लगभग 1000, ब्रिटेन ने लगभग 45, फ्रांस ने 210. चीन ने 50 और भारत ने लगभग 10 परमाणु परीक्षण किए हैं. पाकिस्तान ने भारत से होड़ लगाते हुए 10 के आस-पास परमाणु परीक्षण किए हैं, ईरान, इराक़, उत्तर कोरिया-दक्षिण कोरिया और लीबिया ने भी...


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