अकदस वहीद
1980 के दशक के अंत से ही पाकिस्तान में उदारीकरण की नीति तेज़ी से लागू की जाने लगी. निर्यात पर लगे टैक्स को कम किया गया और व्यापार पर लगे प्रतिबंधों को बिना देर किए वापस ले लिया गया. पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था के शुरुआती दिनों को एक कमज़ोर औद्योगिक ढांचे के साथ कृषि क्षेत्र के वर्चस्व और एक आधारभूत संरचना की नामौजूदगी के तौर पर वर्गीकृत किया जा सकता है. इन सबके परे पाकिस्तान अस्थिर अर्थ-राजनीति का भी शिकार रहा. लिहाजा, शुरुआती दिनों में बनाई गई नीतियों में एक मज़बूत औद्योगिक ढांचा बनाने की कोशिशों पर ज़ोर दिया गया. इस कोशिश में पाकिस्तान ने व्यापार में घरेलू बाज़ार को सुरक्षित रखने के लिए कई प्रतिबंध लगाए. साठ के दशक में पाकिस्तान के औद्योगिक ढांचे की नींव रखी गई, जिसके चलते कई बड़ी-ब़डी उत्पादन इकाइयों को लगाया गया, लेकिन उनमें से कई इकाइयां घरेलू बाज़ार को सुरक्षित रखने के अपने मकसद में ज़्यादा कारगर नहीं हो सकीं. इस विफलता के चलते देश में आयात ब़ढाने के लिए कई क़दम उठाए गए. इनमें एक्सचेंज रेट को पुनर्गठित करना, आयात पर बोनस और उन उद्योगों को क्रेडिट देना शामिल था, जिनमें आयात ब़ढाने की क्षमता थी. पाकिस्तान सरकार के इस क़दम से देश में औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ 1960 के दशक में आयात के आंकड़ों में का़फी इज़ाफा हुआ. इसके बावजूद 1970 के दशक में औद्योगिक विकास को लगाम लग गई, जिसकी अहम वज़ह औद्योगिक क्षेत्रों का राष्ट्रीयकरण करना था. हालांकि सरकार ने कई विभिन्न इकाइयों का राष्ट्रीयकरण किया. इसके अलावा सरकार ने आयात ब़ढाने के लिए उदारीकरण की दिशा में तीन अहम क़दम उठाए, जिनमें 1972 में पाकिस्तानी रुपये की कीमत 57 प्रतिशत कम करना, आयात के लिए दिए जा रहे बोनस की समाप्ति और देश में लाइसेंस राज पर लगाम आदि शामिल हैं. इन फैसलों से पाकिस्तान के आयात में वृद्धि हुई और यह वृद्धि खासतौर पर पाकिस्तान में ही निर्मित उत्पादों में हुई.
पूरी खबर के लिए चौथी दुनिया पढ़े....
बुधवार, 9 दिसंबर 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें