संतोष भारतीय
क्या नीतीश कुमार ने आलोचना सुनना बंद कर दिया है? उनके साथियों का कहना है कि अगर उन्हें मनमा़िफक बात न कही जाए तो वे नाराज़ हो जाते हैं. जिन नीतीश कुमार को हम जानते हैं, वे ऐसे नहीं थे. अभी भी बिहार का एजेंडा तय करने की ताक़त उनमें है. अगर वे यह कर पाए तो बिहार फिर उनका है, और अगर लालू यादव और राम विलास पासवान ने एजेंडा तय किया तो बिहार उनका होगा, नीतीश कुमार का नहीं.नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं. इसी महीने उन्होंने चार साल पूरे किए हैं और चाहते हैं कि अगले वर्ष जब वे विधानसभा चुनाव में जाएं तो उन्हें फिर जीत हासिल हो. नीतीश ने हाल में सत्रह सीटों के लिए हुए उपचुनाव में केवल तीन पर जीत हासिल की, पंद्रह में वे हार गए. दो सीटें भाजपा के पास गईं. कह सकते हैं कि नीतीश कुमार को पांच सीटें मिलीं. हारे तो वे लालू यादव और राम विलास पासवान के गठजोड़ की वजह से, लेकिन एक कारण और था जिसके लिए नीतीश कुमार की तारी़फ की जानी चाहिए. वह कारण था सांसदों और विधायकों के रिश्तेदारों टिकट न देना. कम से कम नीतीश कुमार ने परिवारवाद के खिला़फ कार्यकर्ताओं के लिए अवसर बनाने के लिए जो साहस दिखाया, वह प्रशंसनीय है. यह अलग बात है कि उन्हीं की पार्टी के उन लोगों ने चुनाव में धो़खा दिया, जो अपने बेटे या अपनी पत्नी को चुनाव लड़ाना चाहते थे. लेकिन केवल एक यही वजह नहीं थी नीतीश कुमार के दल जनता दल (यू) की हार की. कई वजहें और रहीं, पर चार साल पूरे होने पर पहले उन पर नज़र डालें, जो अच्छे कामों की श्रेणी में आते हैं...
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