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बुधवार, 9 दिसंबर 2009

बुंदेलखंड बेबस और बदहाल है

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
बुंदेलखंड में लोग ज़िंदगी जीते नहीं, ढोते हैं. प्रकृति और व्यवस्था दोनों ही उनकी कड़ी परीक्षा लेती हैं. ब़ंजर जमीन, पानी की कमी, बेरोजगारी, विकास योजनाओं का अभाव और सरकारी-प्रशासनिक उपेक्षा ने यहां लोगों का जीना मुहाल कर रखा है. हद तो यह कि उन्हें मिलने वाली मदद भी सियासी दांवपेंच में उलझ कर रह जाती है. बुंदेलखंड के चित्रकूट मंडल की धरती का दर्द बहुत ही गहरा है. हर ओर यहां सिर्फ और सिर्फ सिसकियां ही सुनाई देती हैं. यहां प्रकृति रो रही है, लोग रो रहे हैं, पूरा परिवेश रो रहा है. उत्तर प्रदेश के सात जिलों में फैले बुंदेलखंड में लोग आज भी जल, जंगल और जमीन के लिए तड़प रहे हैं. महिलाओं, दलितों और वंचितों की जिंदगी तो बस बोझ बनकर रह गई है. रोजी-रोटी और पानी की समस्या इतनी विकट है कि हर साल केवल इसी वजह से हजारों लोगों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ता है. सामंतवाद यहां अभी भी जिंदा है. गरीब, बेबस और लाचार लोगों के साथ यहां कानून भी सिसकियां भरता नजर आता है....

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