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रविवार, 24 मई 2009

क्या कहता है बदला हुआ मुस्लिम मिज़ाज

ए.यू.आसिफ

इस बार के आम चुनाव के परिणामों पर नज़र डालते ही सा़फ तौर पर अंदाज़ा हो जाता है कि मुस्लिम रुझान बदला है और कांग्रेस की जो बेहतर स्थिति बनी है उसमें इस बदले हुए रुझान का बड़ा योगदान है. वैसे यह अलग बात है कि इस बदले हुए रुझान में भी उसकी अपनी हस्ती कम या गुम होती हुई प्रतीत हो रही है.
आंकड़ों के अनुसार इस बार पूरे देश से मात्र 29 मुसलमान उम्मीदवार ही निर्वाचित हुए हैं. इनमें उत्तर प्रदेश से सात, पश्चिम बंगाल से छह, जम्मू-कश्मीर से चार, बिहार से तीन, केरल से तीन, असम से दो, तमिलनाडु से दो, आंध्र प्रदेश एवं लक्षद्वीप से एक-एक शामिल हैं. इससे यह अंदाज़ा होता है कि मात्र आठ राज्यों एवं एक केंद्र शासित प्रदेश से ही 15 वीं लोकसभा में मुसलमानों को प्रतिनिधित्व मिल पाया है, जबकि 20 ऐसे राज्य और पांच ऐसे केंद्र शासित प्रदेश हैं जहां से एक भी मुसलमान नई लोकसभा में नहीं पहुंच पाया. हालांकि देश के विभिन्न भागों में 138.2 मिलियन (13.4 प्रतिशत) मुसलमान हैं. जिन राज्यों से कोई भी मुस्लिम प्रतिनिधि नहीं चुना गया है, वे महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तरांचल, उड़ीसा, पंजाब, हरियाणा,नगालैंड, मिज़ोरम, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, गोवा एवं सिक्किम हैं. इसी प्रकार बचे हुए केंद्र शासित प्रदेशों चंडीगढ़, अंदमान निकोबार द्वीप समूह, दादर नगर हवेली, दमन व दियु और पांडिचेरी हैं. अजीब बात यह है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से भी कोई मुस्लिम प्रतिनिधि नहीं चुना गया है.
पार्टियों के लिहाज से भी स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं है. इस बार कांग्रेस के 11, बसपा के चार, नेशनल कांफे्रंस के तीन, तृणमूल कांग्रेस के दो, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के दो एवं जद (यू)-भाजपा, डीएमके , माकपा, ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन एवं असम यूनाइटेड डेमोक्रटिक पार्टी के एक-एक मुस्लिम सांसद...




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