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रविवार, 24 मई 2009

राजनैतिक दलों को जनता की स्पष्ट चेतावनी


संतोष भारतीय

जनता ने अपना फैसला सुना दिया, लेकिन यह केवल फैसला नहीं है, चेतावनी भी है. यह चेतावनी राजनीति के आकाश पर साफ-साफ लिखी है और पढ़ी जा सकती है, बशर्ते कांग्रेस पार्टी और सरकार के पास इसे पढ़ने और समझने का व़क्त हो. इस समय कांग्रेस और मनमोहन सरकार के आसपास भांड़ों का मेला है जो ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला कर साबित करने में जुटे हैं कि उन्होंने तो कांग्रेस के जीतने की पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी, अब ये भांड़ राजनीति की मलाई में मुंह मारना चाहते हैं. इन भांड़ों ने पहले भाजपा को जिताया, बाद में दोनों को बराबर दिखा कर अस्थिरता की भविष्यवाणी की, अब ये रोज़ झूठ

बोलकर कांग्रेस को गुमराह कर रहे हैं. ये भांड़ ही कांग्रेस की चरणवंदना और प्रशस्तिगान करते-करते उसे मदहोशी का ज़हर पिलाएंगे, और नशे में कर इतने ग़लत काम करा देंगे जिससे जनता कांग्रेस के ख़िला़फ खड़ी हो जाएगी. चारण अपनी भंड़ैती की पराकाष्ठा पर चले गए हैं और कांग्रेस को भरोसा दिला रहे हैं कि उसने 206 नहीं बल्कि चार सौ चौदह सीटें जीत लीं हैं, जो इतिहास में केवल एक बार राजीव गांधी ने जीती थीं. हमें दुख है कि पत्रकारिता में ऐसे चारणों की भरमार हो गई है जो केवल एक सिद्धांत में भरोसा करते हैं कि उन्हें सरकारी पार्टी में रहना है, फिर सरकार चाहे कांग्रेस की बने या भाजपा
की या किसी और की. यह समस्या कांग्रेस की है कि वह नशा पिलाने वालों को अपने आसपास इकट्ठा क्यों कर रही है, क्यों इनके जाल में फंस रही है और क्यों अपने शुभेच्छुओं से दूर हो रही है. हम कांग्रेस को अप्रिय सत्य बताना चाहते हैं. उसे इन चारणों और भांड़ों से हटकर इस बात पर सोचना चाहिए कि पिछले सालों में हुए सभी विधानसभा चुनावों में हार के बावजूद क्यों जनता ने उसे लोकसभा में सबसे ब़ड़ी पार्टी के रूप में जिताया. इतना ही नहीं, जनता ने कमरतोड़ महंगाई पर भी ध्यान नहीं दिया. दालों की क़ीमत, गेहूं, चना, ज्वार, बाजरा, मसाले, तेल यहां तक कि चीनी का भाव भी कांग्रेस के नेता चाहें तो पता कर लें. पांच हज़ार या उससे कम कमाने वाले देश में करोड़ों हैं, उनकी चाय में चीनी नहीं पड़ती, वे नमक डालकर चाय पी रहे हैं. बेरोज़गारी का हाल बताने की ज़रूरत नहीं, हर चौथे घर में कोई न कोई बेकारी का शिकार है. इसी मई में ही करोड़ों नौकरियां गईं, क्योंकि कंपनियों ने मंदी का बहाना बना छंटनी कर दी है. नौजवान बेराज़गारों को किसी क़ानून की मदद का भरोसा नहीं है. इसके अलावा किसान अपनी खाद को लेकर परेशान है, जो उसे इस बार बहुत महंगी दर पर ब्लैक में मिलेगी. क़र्ज़ के जाल से निकलने का उसके पास कोई रास्ता नहीं है. क़र्ज़ माफी उसे तात्कालिक राहत दे गई, पर किसान को मालूम है कि क़र्ज़ के जाल में उसे दोबारा फंसना ही है, क्योंकि वित्त मंत्रालय की नीति ही उसे इस जाल में जकड़े रहने की है. मज़दूरों के काम के दिन घटते जा रहे हैं, हालांकि सरकार ने ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना चलाई है जिस का फायदा बड़े तबके को हुआ, लेकिन तीन सौ पैंसठ दिन में केवल सौ दिन काम की गारंटी और वह आमदनी भी महंगाई की भेंट चढ़ जाती है. ऐन मौके पर देश में बोफोर्स केस का खुलासा और सिख दंगे को लेकर कांग्रेस के सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर को निशाना बनाना तथा कांग्रेस का इसका मज़बूती से मुक़ाबला न करने ने अच्छा असर नहीं छोड़ा.



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