व्यालोक
वर्ण व्यवस्था में शूद्रों को सबसे नीचे का और अधिकाधिक बंधनों का पायदान भी मनुस्मृति के बाद ही दिया गया. मनुस्मृति में ही यह तय कर दिया गया कि शूद्रों का काम केवल द्विजों की सेवा करना है, ब्राह्मण अपनी मर्जी से जब और जहां चाहें, शूद्रों को भेज सकते है और जितनी चाहें...महान लेखक का बुढ़भस
अनंत विजय
सर विदियाधर सूरजप्रसाद नायपॉल, विश्व साहित्य के बड़े नाम हैं, नोबल पुरस्कार विजेता भी हैं. दो दर्जन से अधिक किताबों के लेखक, साहित्य की दुनिया में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं . कई लोगों का मानना है कि नायपॉल भारतीय मूल के लेखकों में सबसे महत्वपूर्ण लेखक हैं और कुछ हद तक ये सही भी है . एक लेखक के रूप में नायपॉल का उदय पचास के दशक के अंतिम वर्षों में हुआ और उत्तर औपनिवेशिक लेखन में उनके नाम का डंका बजने लगा. उनके शुरुआती उपन्यासों में उनके लेखन की विलक्षणता साफ तौर पर परिलक्षित की जा सकती है. उनके शुरुआती उपन्यासों में एक खास किस्म की ताजगी दिखाई देती है, जिसमें जीवन के विविध रंगों के साथ लेखक का ह्यूमर और उसके आसपास के लोक और समाज की घटनाओं का बेहतरीन चित्रण भी है. कई लोगों का मानना है कि नायपॉल के लेखन ने बाद के भारतीय लेखकों के के लिए एक ठोस जमीन भी तैयार कर दी . साठ और सत्तर के दशक में भी सर विदियाधर के लेखन का परचम अपनी बुलंदी पर था . उस दौरान लिखे उनके उपन्यास - अ हाउस फॉर मि. विश्वास- से उन्हें खासी प्रसिद्धि मिली और इस उपन्यास को उत्तर औपनिवेशिक लेखन में मील का पत्थर माना गया . नायपॉल का लेखक उन्हें लगातार भारत की ओर लेकर लौटता है. नायपॉल ने भारत के बारे में उस दौर में तीन किताबें लिखी - एन एरिया ऑफ डार्कनेस (1964), इंडिया अ वुंडेड सिविलाइजेशन (1977) और इंडिया: अ मिलियन म्युटिनी नाउ (1990) लिखी. इस दौर तक तो नायपॉल के अंदर का लेखक बेहद बेचैन रहता था, तमाम यात्राएं करता रहता था और अपने लेखन के लिए कच्चा माल जुटाता था. एन एरिया ऑफ डार्कनेस को तो आधुनिक यात्रा साहित्य में क्लासिक्स माना जाता है. इसमें नायपॉल ने अपनी भारत की यात्रा के अनुभवों का वर्णन किया है. इस किताब में नायपॉल ने भारत में उस दौर की जाति व्यवस्था के बारे में प्रमाणिकता के साथ लिखा है. बाद के दिनों में, उम्र बढ़ने के साथ-साथ नायपॉल के लेखन में एक ठहराव सा आ गया. साथ ही विचारों में जड़ता भी.
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