सुरेंद्र किशोर
अति पिछड़ों के लिए आरक्षण, कानून-व्यवस्था में भारी सुधार और विकास योजनाओं की धमाकेदार शुरुआत ने बिहार में राजग को बड़ी चुनावी जीत दिला दी. इसके अलावा नीतीश कुमार का महादलित कार्ड और पसमांदा मुस्लिम के लिए उनकी सरकार की कल्याण योजनाओं की भी इस चुनाव में भूमिका रही.पिछले पंद्रह साल के लालू-राबड़ी शासन काल में आम तौर से इससे उलट काम होते रहे थे. इस ग़रीब, पिछड़े और अभागे प्रदेश के मतदाताओं ने दोनों निज़ामों के बीच का अंतर साफ-साफ देख लिया और पक्षपातपूर्ण सामाजिक न्याय तथा एकतरफा धर्म
निरपेक्षता के नारे के कथित मसीहा लालू प्रसाद और रामविलास पासवान के गठबंधन को निर्णायक ढंग से इस बार पराजित कर दिया. संकेत बताते हैं कि लालू प्रसाद और रामविलास पासवान को अब एक बार फिर राजनीतिक तौर पर उठ खड़ा होने में काफी समय लग सकता है, क्योंकि उन्हें तो इसके लिए अपनी पूरी राजनीतिक संस्कृति ही बदलनी पड़ेगी जो उनके लिए आसान काम नहीं होगा. चुनाव नतीजे आने के बाद लालू प्रसाद और रामविलास पासवान की ओर से जो त्वरित प्रतिक्रियाएं आई हैं, उनसे तो नहीं लगता कि वे अपनी पुरानी राजनीतिक संस्कृति को बदलेंगे. शायद उसे बदलने की क्षमता ही वे खो चुके हैं. उधर कांग्रेस बिहार में एक सक्षम प्रतिपक्ष बनने की क्षमता पहले ही खो चुकी है. इस तरह यदि नीतीश सरकार का निकट भविष्यमें किसी दमदार व प्रामाणिक प्रतिपक्ष से सामना नहीं हुआ तो नीतीश कुमार के देर-सवेर एकाधिकारवादी बन जाने का ख़तरा भी सामने है. यदि यह कहा जाए कि लालू प्रसाद ख़ुद अपनी राजनीतिक कब्र खोद कर ख़ुद ही उसमें लेट गये हैं तो इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. लालू प्रसाद सन 2000 से ही राजनीतिक रूप से कमज़ोर होना शुरू हो गये थे. सन 1996 में चारा घोटाले...
अति पिछड़ों के लिए आरक्षण, कानून-व्यवस्था में भारी सुधार और विकास योजनाओं की धमाकेदार शुरुआत ने बिहार में राजग को बड़ी चुनावी जीत दिला दी. इसके अलावा नीतीश कुमार का महादलित कार्ड और पसमांदा मुस्लिम के लिए उनकी सरकार की कल्याण योजनाओं की भी इस चुनाव में भूमिका रही.पिछले पंद्रह साल के लालू-राबड़ी शासन काल में आम तौर से इससे उलट काम होते रहे थे. इस ग़रीब, पिछड़े और अभागे प्रदेश के मतदाताओं ने दोनों निज़ामों के बीच का अंतर साफ-साफ देख लिया और पक्षपातपूर्ण सामाजिक न्याय तथा एकतरफा धर्म

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