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मंगलवार, 30 जून 2009

हम नहीं सुधरेंगे

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का संदेश


भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हर मायने में विफल रही. इस बैठक के बाद भाजपा पहले से कहीं ज़्यादा भ्रमित नज़र आ रही है. नेतृत्व और विचारधारा को लेकर, संगठन को मज़बूत करने की बात पर, युवाओं को पार्टी में जगह देने के मसले पर, संघ के साथ संबंध के मुद्दे पर और हिंदुत्व के रूप और मायने पर भाजपा में दिशाहीनता की स्थिति है. हार की वजहों को ढूंढने निकली भाजपा का हाल यह रहा कि इस बैठक के ज़रिए पार्टी की अंदरूनी कलह सबके सामने आ गई. राष्ट्रीय कार्यकारिणी में नेता एक-दूसरे पर निशाना साधते नज़र आए. पार्टी के अंदर मौजूद सारे गुट सबके सामने आ गए. पार्टी के शीर्ष नेताओं ने अपने बयानों से कार्यकर्ताओं को निराश किया और बची-खुची कसर दूसरी पंक्ति के नेताओं ने आपस में लड़कर पूरी कर दी. भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का हाल किसी पिटे हुए बॉलीवुड फिल्म की तरह रहा. इसकी पृष्ठभूमि शानदार थी, ट्रेलर बनाने में भी ख़ासी मेहनत की गई, ज़ोरदार प्रचार भी किया गया, लेकिन भाजपा की इस फिल्म में कोई क्लाइमेक्स ही नहीं था-बहुत शोर सुनते थे, पहलू में दिल का, जो चीरा तो क़तरा-ए-ख़ूं भी न निकला. दो दिनों की सिरफुटव्वल का कोई नतीजा कुछ भी नहीं निकला. लालकृष्ण आडवाणी ने इस राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पार्टी को फिर से उसी दलदल में धकेल दिया जिसकी वजह से पार्टी गर्त में गई है. आडवाणी ने हार के लिए ज़िम्मेदार लोगों का बचाव किया. प्रेस में पार्टी के अनधिकृत रूप से रणनीतिकार बनकर पार्टी के ही ख़िला़फ लिखने वाले अपने चहेते सलाहकारों को बचाया. सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि आडवाणी संगठन को बचाने के लिए देश भर की यात्रा पर निकलेंगे, लेकिन उन्हें कौन बताए कि जब कार्यकर्ता ही पार्टी से रूठ जाएंगे तो आडवाणी की यात्रा भी पिछली यात्रा की तरह बेमानी ही हो जाएगी.


आडवाणी का हठ
लालकृष्ण आडवाणी के हठ का भी जबाव नहीं. हार के बाद उन्होंने स्वेच्छा से संन्यास की घोषणा कर दी थी. बाद में अपने सलाहकारों और उनके नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं के कहने पर वह लोकसभा में न स़िर्फ नेता प्रतिपक्ष बने, बल्कि अब पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए देश भर की यात्रा का ऐलान भी कर दिया. आडवाणी ने अपने गुट के नेताओं का पुरज़ोर बचाव किया. भाजपा के चुनाव मैनेजरों के बचाव में उन्होंने एक से एक दलीलें दीं. कुछ सच कुछ झूठ. आडवाणी ने भाजपा की सचिन तेंदुलकर से तुलना की. यह अजीबोगरीब है. उन्होंने कहा कि सचिन भी तो 99 पर आउट हो जाते हैं. यह तुलना ग़लत है, क्योंकि सचिन क्रिकेट के सबसे महान बल्लेबाज हैं. क्या आडवाणी खुद को या भाजपा को राजनीति का सचिन मानते हैं. अगर भाजपा की तुलना किसी क्रिकेटर से की जाए तो वह विश्वकप जीतने के बाद वेस्टइंडीज सीरीज में मोहिंदर अमरनाथ से की जानी चाहिए, जिन्होंने इस सीरीज में शून्य पर आउट होने का विश्व रिकार्ड बनाया था. आडवाणी जी को समझना चाहिए कि भाजपा यह चुनाव एक रन से नहीं हारी है, वह दूसरी बार जनता द्वारा नकार दी गई पार्टी बन चुकी है. आडवाणी का पूरा भाषण पार्टी के रणनीतिकारों को बचाने की कवायद रही. उन्होंने कुछ नेताओं की आपसी छींटाकशी पर भी...


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