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मंगलवार, 30 जून 2009

मायावती जी, ध्यान दीजिए

सप्तसागर झील को ख़त्म करने की साज़िश




आर के यादव और बी.डी शर्मा की रिपोर्ट

भारत की राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थिति में अयोध्या का महत्व किसी से छुपा नहीं है. यही वह स्थान है, जहां से राम के नाम पर शुरू हुई राजनीति की वजह से हिंदुस्तान की केंद्रीय और प्रादेशिक सत्ता में भूचाल आ गया. धर्म के नाम पर भाजपा की राजनीति राममंदिर के निर्माण को लेकर केंद्रीय सत्ता में चमकी. इसी अयोध्या में भगवान राम के अस्तित्व से ज़ुडा और कई एकड़ क्षेत्र में फैली सप्तसागर नाम की झील आज शासन, प्रशासन और भू-माफियाओं के कारण अपनी पहचान खो चुकी है. इसको बचाने के लिए अयोध्या में कोई महंत या भाजपा का कोई संगठन भी नहीं आया. यदि सप्तसागर का नाम आज के अयोध्या में लिया जाए तो वहां सप्तसागर कॉलोनी के अलावा कुछ नहीं मिलेगा. सप्तसागर के नाम से जो खाली ज़मीन पड़ी है, उसमें भी अधिकतर को बड़े रसूख वालों के नाम पट्टा कर दिया गया है. लोग मकानों के निर्माण में लगे हैं. इस काम में विकास प्राधिकरण भी पीछे नहीं है. ज़मीन का सौदा बाद में होता है और उसका ऩक्शा पहले बन जाता है. धर्म के ठेकेदारों को इस सप्तसागर के अस्तित्व को ख़त्म करने के लिए मोटी रकम मिल रही है, और इसीलिए आज तक किसी ने इस धरोहर को बचाने की पहल नहीं की.


सप्तसागर का ऐतिहासक महत्व
इतिहासों में वर्णित है कि मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के राज्याभिषेक के अवसर पर इसमें सातों समुद्रों और समस्त तीर्थो का जल डाला गया, तब से इसका नाम सप्तसागर पडा. ऐसा भी पुराणों में वर्णित है कि सीता नित्य अपनी सहचरियों के साथ कनक भवन से निकल कर सप्तसागर में स्नान कर सप्तसागर के तट पर विराजमान काली जी कीपूजा किया करती थीं. राज परिवार के लोगों का जब विवाह होता था तो उनकी मौरी सप्तसागर में ही विसर्जित की जाती थी. अयोध्यामहात्म्य पुस्तक के अनुसार श्री अयोध्यानगरी के मध्य भाग में रमणीय सप्तसागर नाम का कुंड है जो इच्छित फल देने वाला है. हर पूर्णिमा को समुद्र स्नान करने से जो पूर्ण फल प्राप्त होता है, वही फल इस कुंड में किसी भी दिन स्नान करने से मिलता है. यहां की प्रसिद्घ वार्षिक यात्रा...


कौन है सप्तसागर की जमीन का असली मालिक
आज़ादी के बाद गांवों में ज़मींदारी व्यवस्था तो ख़त्म हो गई थी लेकिन शहरी क्षेत्रों में ज़मींदारी व्यवस्था नहीं ख़त्म हो सकी. अयोध्या में सप्तसागर पर अयोध्या स्थित बड़ा स्थान तथा राजगोपालाचारी मंदिर का आधिपत्य रहा. सप्तसागर की सुरक्षा इन्हीं दो मंदिरों के कर्ताधर्ताओं के विवेक पर निर्भर रही. जब तक धर्मनगरी में धार्मिक आंदोलन चलते रहे, तब तक सप्तसागर झील के रूप में विद्यमान रहा और अयोध्या का पानी उसमें इकट्ठा होता रहा. यह लगता रहा कि सप्तसागर की विरासत ज़िंदा है.आज हालात बदल गए हैं. इस ज़मीन पर दलालों एवं भूमाफियों की नज़र लगभग तीन वर्ष पहले लगी थी. उन्होंने बड़ा स्थान तथा राजगोपालाचारी मंदिरों के महंतों को प्रलोभन देना शुरू किया. साथ ही दलालों ने मोटी कमाई के लालच में ग्राहकों को जुटाना शुरू किया, ये दलाल स्वयं तो पट्टा करते नहीं, केवल ग्राहकों को ढूंढते हैं और पट्टे का काम बड़ा स्थान तथा उससे जुड़े पट्टेदार स्वयं करते है, इन महंतों का कार्य भी इस तरह से चलता है कि किसी को यह शक न हो कि पट्टा कब और कैसे हो गया. इसकी भनक किसी को न लगे, इसके लिए इन दोनों मंदिरों में ज़मीनों के रख-रखाव व खरीद-फरोख़्तके लिए अलग विभाग हैं. ज़मीन की बिक्री कितने में होती है, सौदा कौन करता है, इससे इन महंतों को मतलब...


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