
संजीव पांडेय
अपने राजनीतिक जीवन के सबसे बुरे दिन देख रहे भजनलाल ने अंतिम जुआ खेला है. कई तरफ से थपेड़े झेल रहे भजनलाल ने अब मायावती के सहयोग से हरियाणा में कांग्रेस को घेरने की योजना बनाई है. आने वाले विधानसभा चुनाव में भजनलाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी मिलकर चुनाव लड़ेगी. हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपनी जीत निश्चित मान रही कांग्रेस के लिए निश्चित रुप से यह बुरी खबर है. वोट बैंक के लिहाज से बसपा और भजनलाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस का इकठा होना ख़तरनाक है. संभावना जताई जा रही है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कड़ी टक्कर मिलेगी. राज्य में एक बार फिर गैर जाट मतदाताओं को इकट्ठा होने का अवसर मिला है. उधर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के प्रहारों को झेल रही मायावती भी कांग्रेस को स्पष्ट संकेत दे रही है कि आने वाले समय में वे यूपी से बाहर गैर कांग्रेसी दलों से समझौता करेंगी. इससे निश्चित तौर पर कांग्रेस की परेशानी बढ़ेगी. मायावती की यह रणनीति यूपी में कांग्रेस को रक्षात्मक रुख लाने पर मजबूर कर सकती है.
18 जून को लखनऊ में मायावती, भजनलाल और उनके बेटे कुलदीप ने संयुक्त रुप से अपनी रणनीति का खुलासा किया. इस रणनीति के तहत हरियाणा विधानसभा चुनाव दोनों मिल कर लड़ेंगे. बड़े दल की भूमिका में भजनलाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस रहेगी, जबकि बसपा छोटे भाई की भूमिका में रहेगी. भजनलाल की पार्टी पचास सीटों पर चुनाव लड़ेगी. कुलदीप विश्नोई मुख्यमंत्री के उम्मीदवार होंगे. बसपा चालीस सीटों पर लड़ेगी. बसपा को सता में आने के बाद डिप्टी सीएम पद मिलेगा. वह दलित वर्ग से होगा. गुप्त तरीके से दिए गए इस समझौते से कांग्रेसी उलझन में फंस गए. आनन-फानन में हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा शून्य प्लस शून्य बराबर शून्य. हालांकि यह बयान सच्चाई बयां नहीं करता. समझौते को जिस गुपचुप तरीके से अंजाम दिया गया उससे कांग्रेसी हैरान हैं. कांग्रेस को पता तक नहीं चला. राज्य सचिवालय की गैलरी में सक्रिय पत्रकारों को इसकी जानकारी तक नहीं मिली. सीधे लखनऊ से खबर आई, समझौता हो गया. पत्रकारों के फोन बजने लगे. क्योंकि सब कुछ अप्रत्याशित था. बसपा ने इस बार कांग्रेस को बेवकूफ बनाने के लिए अलग इशारा कर रखा था. बसपा नेता यह संकेत दे रहे थे कि विधानसभा चुनाव में समझौते के लिए उनकी बातचीत इनेलो के ओमप्रकाश चौटाला से चल रही है. इस समझौते के पीछे तर्क यह था कि इनेलो के जाट और बसपा के दलित समीकरण से राज्य विधानसभा में कांग्रेस को घेरा जाएगा. पर सारा खेल ही उल्टा हो गया.
उधर इन सारी परिस्थितियों में हजकां के अंदर हो रहे विद्रोह रुकने के संकेत है. हरियाणा जनहित कांग्रेस के दो नेता सुभाष बतरा और पूर्व मंत्री कृष्णमूर्ति हुड्डा ने हाल ही में विद्रोह कर दिया था और पार्टी अध्यक्ष कुलदीप विश्नोई को ही पार्टी से निकालने का दावा किया था. उन्हें लग रहा था कि भजनलाल अब गए दिन की बात हो गए. उनकी कोई राजनीतिक हैसियत नहीं है क्योंकि भजनलाल खुद काफी मश्किल से हिसार से लोकसभा जीत कर आए है. उधर लोकसभा चुनाव में 59 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को मिली बढ़त ने हरियाणा जनहित कांग्रेस के नेताओं को निराश कर दिया था.
अपने राजनीतिक जीवन के सबसे बुरे दिन देख रहे भजनलाल ने अंतिम जुआ खेला है. कई तरफ से थपेड़े झेल रहे भजनलाल ने अब मायावती के सहयोग से हरियाणा में कांग्रेस को घेरने की योजना बनाई है. आने वाले विधानसभा चुनाव में भजनलाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी मिलकर चुनाव लड़ेगी. हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपनी जीत निश्चित मान रही कांग्रेस के लिए निश्चित रुप से यह बुरी खबर है. वोट बैंक के लिहाज से बसपा और भजनलाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस का इकठा होना ख़तरनाक है. संभावना जताई जा रही है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कड़ी टक्कर मिलेगी. राज्य में एक बार फिर गैर जाट मतदाताओं को इकट्ठा होने का अवसर मिला है. उधर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के प्रहारों को झेल रही मायावती भी कांग्रेस को स्पष्ट संकेत दे रही है कि आने वाले समय में वे यूपी से बाहर गैर कांग्रेसी दलों से समझौता करेंगी. इससे निश्चित तौर पर कांग्रेस की परेशानी बढ़ेगी. मायावती की यह रणनीति यूपी में कांग्रेस को रक्षात्मक रुख लाने पर मजबूर कर सकती है.
18 जून को लखनऊ में मायावती, भजनलाल और उनके बेटे कुलदीप ने संयुक्त रुप से अपनी रणनीति का खुलासा किया. इस रणनीति के तहत हरियाणा विधानसभा चुनाव दोनों मिल कर लड़ेंगे. बड़े दल की भूमिका में भजनलाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस रहेगी, जबकि बसपा छोटे भाई की भूमिका में रहेगी. भजनलाल की पार्टी पचास सीटों पर चुनाव लड़ेगी. कुलदीप विश्नोई मुख्यमंत्री के उम्मीदवार होंगे. बसपा चालीस सीटों पर लड़ेगी. बसपा को सता में आने के बाद डिप्टी सीएम पद मिलेगा. वह दलित वर्ग से होगा. गुप्त तरीके से दिए गए इस समझौते से कांग्रेसी उलझन में फंस गए. आनन-फानन में हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा शून्य प्लस शून्य बराबर शून्य. हालांकि यह बयान सच्चाई बयां नहीं करता. समझौते को जिस गुपचुप तरीके से अंजाम दिया गया उससे कांग्रेसी हैरान हैं. कांग्रेस को पता तक नहीं चला. राज्य सचिवालय की गैलरी में सक्रिय पत्रकारों को इसकी जानकारी तक नहीं मिली. सीधे लखनऊ से खबर आई, समझौता हो गया. पत्रकारों के फोन बजने लगे. क्योंकि सब कुछ अप्रत्याशित था. बसपा ने इस बार कांग्रेस को बेवकूफ बनाने के लिए अलग इशारा कर रखा था. बसपा नेता यह संकेत दे रहे थे कि विधानसभा चुनाव में समझौते के लिए उनकी बातचीत इनेलो के ओमप्रकाश चौटाला से चल रही है. इस समझौते के पीछे तर्क यह था कि इनेलो के जाट और बसपा के दलित समीकरण से राज्य विधानसभा में कांग्रेस को घेरा जाएगा. पर सारा खेल ही उल्टा हो गया.
उधर इन सारी परिस्थितियों में हजकां के अंदर हो रहे विद्रोह रुकने के संकेत है. हरियाणा जनहित कांग्रेस के दो नेता सुभाष बतरा और पूर्व मंत्री कृष्णमूर्ति हुड्डा ने हाल ही में विद्रोह कर दिया था और पार्टी अध्यक्ष कुलदीप विश्नोई को ही पार्टी से निकालने का दावा किया था. उन्हें लग रहा था कि भजनलाल अब गए दिन की बात हो गए. उनकी कोई राजनीतिक हैसियत नहीं है क्योंकि भजनलाल खुद काफी मश्किल से हिसार से लोकसभा जीत कर आए है. उधर लोकसभा चुनाव में 59 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को मिली बढ़त ने हरियाणा जनहित कांग्रेस के नेताओं को निराश कर दिया था.
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