अज्ज आक्खां वारिस शाह नूं किते क़बरां बिच्चों बोलते अज्ज किताबे-इश्क दा कोई अगला वरका खोल..इक्क रोई सी धी पंजाब दी, तू लिख लिख मारे बैनअज्ज लक्खां धीयां रोन्दियां, तैनूं वारिस शाह नूं कहनउठ दर्दमंदां दिय दर्दिया..उठ तक्क अपणा पंजाबअज्ज बेल्ले लाशां बिच्छियां ते लहू दी भरी चिनाब.. अमृता प्रीतम
अक़दस वहीद की रिपोर्ट
को पाने के लिए वे इंसानियत की हर सरहद पार कर सकते हैं. जुम्मा-ए-रोज़,12 जून 2009 को, लाहौर और नोशेरा में हुए धमाकों ने इन शैतानी आतंक़ियों के वहशीपन और दरिंदगी को हमारे सामने रख दिया. इन दोनों हमलों में पाक मस्ज़िद और मदरसे को निशाना बनाया गया. इन दरिंदों ने उनका कत्ल ऐसे व़क्त किया, जब वे खुदा की ख़िदमत कर रहे थे. मासूम निर्दोष बच्चे क़ुरान की आयतें पढ़ रहे थे. फिर भी ये दहशतगर्द खुद को खुदा का रहनुमा बता रहे हैं. क्या फर्क़ है इनमें और उन बेगुनाहों में. क्या उनका ख़ुदा अलग है. या फिर उनकी लड़ाई किसी ताकत को हासिल करने के लिए है या वह किसी अलग मसाइल की जंग लड़ रहे हैं? 12 जून को ही जुम्मा की नमाज़ के तुरंत बाद एक आत्मघाती हमलावर ने बारह किलो बारूद के साथ जामिया नैमिया में धमाका किया. इस धमाके की चपेट में मदरसे के छात्र और आसपास के इलाके के लोग आए. इसी धमाके में पाकिस्तान के सबसे सम्मानित मुल्ला मौलाना सरफ़राज़ नियामी, उनके निकटतम मुल्ला मौलाना खलीलुर रहमान और अब्दुल रहमान की मौत हो गई. इनके साथ-साथ इन धमाकों में एक पत्रकार समेत मदरसे के दो छात्रों की भी मौत हो गई. ये धमाके जिस व़क्त हुए, मदरसे में एक हजार बच्चे मौजूद थे. धमाके के बाद मौके से एक संधिग्ध को गिरफ़्तार किया गया है जिससे पूछताछ चल रही है. मामले की जांच कर रहे अधिकारी डॉक्टर हैदर अशरफ ने बताया कि हमलावर ने अपने कमर पर बारूद की पेटी बांध रखी थी और उसकी पहचान नहीं की जा सकती. डॉ. अशरफ ने बताया कि हमलावर सुरक्षा जांच के कारण मदरसे में उस व़क्त नहीं घुस पाया, जब वहां नमाज पढ़ी जा रही थी. लेकिन नमाज के बाद जैसे ही पुलिस कर्मी मदरसे से चले गए हमलावर ने अंदर घुस कर खुद को उड़ा लिया. ग़ौरतलब है कि मौलाना सरफ़राज़ नियामी ने ख़तरे की आशंका के बावजूद सुरक्षा लेने से मना कर दिया था.इस तरह से लाहौर के मशहूर मौलाना सरफ़राज़ नियामीं की हत्या को अंजाम देकर तालिबानियों ने साफ कर दिया है कि वह किसी भी हद तक जाकर ऐसे लोगों का सफाया कर देंगे, जो उनकी मुख़ालफत करेगा. दरअसल, मौलाना नियामी लाहौर के एक उदारवादी मौलवी थे और तालिबान के ख़िलाफ वह शुरू से ही आवाज़ उटाते रहे हैं. नियामी मानते थे कि ज़ि़हाद महज कोई राज्य ही चला सकता है और तालिबान जैसे आतंकी संगठनों को जिहाद चलाने का हक नहीं है. इसके साथ ही नियामी ने यह फतवा भी जारी किया था कि आत्मघाती हमले गैर-इस्लामी हैं. अपने इस रुख के कारण जहां नियामी समाज के कई मॉडरेट मुल्लाओं के बीच जगह बनाने में कामयाब हुए थे, वहीं तालिबान को उनका विरोध अखरने लगा. लिहाज़ा, तालिबान ने उन्हें क़त्ल कर साफ कर दिया कि तालिबानी-ज़िहाद का विरोध करने वालों को तालिबान साफ कर देगा.फिर भी, इसमें कोई हैरत की बात भी नहीं कि तालिबान किसी मुल्ला या मौलवी पर हमला...पूरी ख़बर के लिए पढ़िए www.chauthiduniya.com
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