
आप अगर आर्सेनिक बेचना चाहते हैं, तो इसका सबसे आसान और उदार तरीक़ा इसे चीनी से लिपटे हुए दवा की तरह बताना होगा. कश्मीर की जनता के घावों पर मरहम लगाने के लिए सुझाई गई अंतरिम राहत में भी कुछ ख़ास नया नहीं है. नियंत्रण रेखा के दोनों ओर असैन्यीकरण की बात भी नई नहीं है. अनूठी बात तो यह है कि वाशिंगटन के द्वारा पाक समर्थित इस अभियान का जबर्दस्त समर्थन किया जा रहा है. बात यहीं ख़त्म नहीं होती. एक कूटनीतिज्ञ के लिए जो बात असामान्य मानी जाएगी और जो तटस्थता को प्रभावित कर सकती है, ऐसी ही उलटबांसी में विलियम बर्न्स (अमेरिका के राजनीतिक मामलों के उपमंत्री) ने दिल्ली को एक ऐसा संदेश देने की जगह के रूप में चुना, जिससे उनके मेजबान चिंतित होते. बर्न्स ने कहा कि कश्मीर के समाधान के लिए सबसे ज़रूरी है कि वहां की जनता को विश्वास में लिया जाए. इससे ज़ाहिर तौर पर इस्लामाबाद को दिली ख़ुशी हुई होगी. असैन्यीकरण की बात काफी तार्किक और मीठी लगती है.यह ज़ाहिर तौर पर सेना को कम करने का एक रास्ता भी है. ओबामा प्रशासन इस समांतर ़फायदे की संभावना से बेहद ख़ुश है. इससे तालिबान के ख़िला़फ युद्ध में अधिक पाक सैनिकों की भागीदारी निश्चित हो सकेगी. पाकिस्तान ने भारतीय सीमा से कुछ सैन्य ब्रिगेडों को तो हटाया है, लेकिन नियंत्रण रेखा पर वही स्थिति है. अपने स्वार्थ की वजह से वाशिंगटन ने इस तथाकथित तार्किक संगठन की भूल की तऱफ से आंखें मूंद ली हैं. कश्मीर को लेकर हुए तीन बड़े युद्धों-1947, 1965 और कारगिल-में पाकिस्तान ने द्विस्तरीय रणनीति अपनाई. एक छद्म सेना का इस्तेमाल पहली पांत के रूप में किया गया. पाकिस्तान इनके लिए इस्तेमाल करनेवाला शब्द हमेशा एक ही रखता है. वे स्वतंत्रता सेनानी के दिखावे में आते हैं. भारत ने 1947 और 1965 में उनके लिए छापामार शब्द का इस्तेमाल किया और अब उनको आतंकी कहता है. यह छद्म सेना कश्मीर के अलावा भी सक्रिय है, इसका पता इसी से चलता है कि मुंबई के आतंकी हमले में पाकिस्तान का उपयोग साबित हो चुका है. असैनिक क्षेत्र पाकिस्तान की सुरक्षा को तय करने के साथ ही भारतीय प्रतिरक्षा को कमज़ोर करेंगे. इसकी वजह यह है कि ऐसा कोई संकेत नहीं दिया गया है कि आतंकी सेना को भी शस्त्रहीन किया जाएगा. तो क्या भारतीय सेना को कश्मीर घाटी को केवल संगठित, बेहद प्रशिक्षित और धन से लैस आतंकी संगठनों की दया पर छोड़ देना चाहिए? भारत के पास ऐसी कोई छद्म सेना नहीं है, क्योंकि यह यथास्थिति को बनाए रखना चाहता है. यह किसी भी पड़ोसी के इलाके पर कोई दावा नहीं करता. अगर अमेरिका भारत में असैनिक क्षेत्र चाहता है...
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