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चौथी दुनिया पढ़िए, फैसला कीजिए
सोमवार, 22 जून 2009
उच्च शिक्षा में उच्च स्तर की घपलेबाज़ी
गंगेश
मिश्र
देश
में
उच्च
शिक्षा
में
उच्च
स्तर
पर
घपलेबाज़ी
का
बड़ा
खेल
चल
रहा
है।
कॉलेजों
-
विश्वविद्यालयों
के
लिए
माई
-
बाप
समझी
जाने
वाली
संस्था
-
विश्वविद्यालय
अनुदान
आयोग
यानी
यूजीसी
-
ने
बड़े
पैमाने
पर
निजी
संस्थानों
को
समकक्ष
यानी
डीम्ड
यूनिवर्सिटी
का
दर्जा
देकर
देश
में
एक
समानांतर
शिक्षा
व्यवस्था
खड़ी
कर
दी
है।
वह
भी
केंद्र
सरकार
और
उसके
मानव
संसाधन
विकास
मंत्रालय
की
आंखों
के
सामने
.
इस
घपलेबाज़ी
को
अदालत
से
लेकर
संसद
की
समिति
तक
पकड़
चुकी
है
,
पर
सरकार
है
कि
कार्रवाई
के
बदले
बयानबाज़ी
कर
रही
है
.
कितनी
अजीब
बात
है
कि
जिस
देश
में
शिक्षा
और
शैक्षिक
संस्थानों
की
सबसे
अधिक
चर्चा
होती
है
,
वहां
दुनिया
के
सबसे
अधिक
निरक्षर
वयस्क
रहते
हैं
.
भारत
सरकार
,
राष्ट्रपति
,
सुप्रीम
कोर्ट
से
लेकर
संसद
तक
चाहे
तो
इस
पर
गर्व
कर
ले
,
हम
तो
शर्मसार
हैं
.
भारतीय
लोकतंत्र
की
इन
शिखर
संस्थाओं
की
उदासीनता
से
भी
हम
चकित
हैं
कि
इन
सबका
ज़ोर
उस
उच्च
शिक्षा
पर
अधिक
रहता
है
,
जिसे
देश
की
आबादी
की
केवल
नौ
फीसदी
ही
प्राप्त
करती
है
.
यह
कहते
हुए
हम
सब
गर्व
करते
हैं
कि
भारत
गांवों
का
देश
है
,
लेकिन
क्या
यह
भी
उतना
ही
गर्व
करने
लायक
है
कि
ग्रामीण
इलाक़ों
में
उच्च
शिक्षा
की
दर
महज़
सात
से
आठ
फीसदी
है
.
इसके
विपरीत
संपन्न
इलाकों
में
यह
27
फीसदी
है
.
यह
तो
हुई
एक
बात
.
दूसरी
बात
यह
कि
मनमोहन
सिंह
के
नेतृत्व
में
दोबारा
सत्ता
में
आई
यूपीए
सरकार
ने
शिक्षा
में
सुधार
के
लिए
सौ
दिनों
का
जो
एजेंडा
तय
किया
है
,
उसमें
भी
सबसे
अधिक
ज़ोर
उच्च
शिक्षा
पर
ही
है
.
सौ
दिन
के
इस
एजेंडे
को
उस
मानव
संसाधन
विकास
मंत्रालय
ने
तैयार
किया
है
,
जिस
पर
देश
में
शिक्षा
व्यवस्था
को
दुरुस्त
करने
का
ज़िम्मा
है
.
लेकिन
उसकी
प्राथमिकता
में
सबसे
ऊपर
फॉरेन
एजुकेशनल
इंस्टीट्यूशन
(
रेगुलेशन
ऑफ
इंट्री
एंड
ऑपरेशन
,
मेंटनेंस
ऑफ
क्वालिटी
एंड
प्रिव्हेंशन
ऑफ
कॉमर्सलाइज़ेशन
)
बिल
को
पारित
कराना
है
.
यानी
भारत
में
गुणवत्ता
युक्त
उच्च
शिक्षा
सुनिश्चित
कराने
के
लिए
विदेशी
यूनिवर्सिटी
को
शैक्षणिक
संस्थान
खोलने
की
छूट
होगी
.
इन
विदेशी
विश्वविद्यालयों
को
यहां
डीम्ड
यूनिवर्सिटी
का
दर्जा
मिलेगा
और
वे
विश्वविद्यालय
अनुदान
आयोग
के
(
यूजीसी
)
के
नियमों
के
तहत
ही
संचालित
होंगी
.
उसी
तरह
,
जिस
मनमाने
ढंग
से
देश
भर
में
अनगिनत
और
कुख्यात
डीम्ड
यूनिवर्सिटी
चल
रही
हैं
.
यानी
इस
सरकार
की
आंख
पर
जो
नज़र
का
चश्मा
चढ़ा
है
,
वह
उच्च
और
तकनीकी
शिक्षा
से
अधिक
नहीं
देख
पाता
.
तो
क्या
बेसिक
और
प्राथमिक
शिक्षा
की
गुणवत्ता
सुधारने
के
लिए
बड़े
क़दम
नहीं
उठाए
जाएंगे
?
हम
बता
दें
,
नहीं
.
इसलिए
कि
उससे
जेबें
नहीं
भरतीं
.
यही
कारण
है
कि
1956-1990
के
बीच
देश
भर
में
जहां
29
संस्थान
ही
डीम्ड
यूनिवर्सिटी
बने
थे
,
वहीं
पिछले
18
साल
में
93
और
बन
गए
.
इतना
ही
नहीं
,
केवल
पिछले
नौ
सालों
में
ही
विश्वविद्यालय
अनुदान
आयोग
(
यूजीसी
)
और
मानव
संसाधन
विकास
मंत्रालय
की
मेहरबानी
से
95
संस्थानों
को
डीम्ड
का
दर्जा
दिया
गया
,
जिनमें
से
लगभग
सभी
मेडिकल
कॉलेज
या
विश्वविद्यालय
हैं
.
इनमें
से
40
एनडीए
के
शासनकाल
(1991-2004)
में
बने
तो
बाक़ी
50
मनमोहन
सिंह
की
पिछली
सरकार
के
दौरान
बने
.
यूजीसी
के
आंकड़ों
के
मुताबिक
दिसंबर
2008
तक
देश
भर
में
कुल
डीम्ड
यूनिवर्सिटी
की
संख्या
122
तक
पहुंच
चुकी
थी
.
ये
आंकड़े
1956
से
इसलिए
शुरू
किए
गए
हैं
,
क्योंकि
यूजीसी
इसी
साल
अस्तित्व
में
आया
था
.
ज़ाहिर
है
,
सरकारी
सर्टिफिकेट
से
कुकुरमुत्ते
की
तरह
उग
रही
शैक्षणिक
संस्थाओं
को
मान्यता
मिल
जाती
है
और
वे
शिक्षा
के
बाज़ार
में
मनमानी
लूट
की
हकदार
बन
जाती
हैं
.
यही
कारण
है
कि
डीम्ड
यूनिवर्सिटी
कही
जाने
वाली
इन
संस्थाओं
में
कैपिटेशन
फीस
के
नाम
पर
छात्रों
का
जमकर
आर्थिक
शोषण
हो
रहा
है
.
शिक्षा
के
बाज़ार
में
यह
खुला
सौदा
है
कि
एक
से
दस
लाख
रुपये
देकर
इंजीनियरिंग
कोर्स
में
दाख़िला
मिल
जाता
है
.
जबकि
एमबीबीएस
कोर्स
के
लिए
20
से
40
लाख
रुपये
और
डेंटल
कोर्स
के
लिए
पांच
से
12
लाख
रुपये
देने
पड़
ही
इन
संस्थाओं
में
दाख़िला
मिलता
है
.
और
तो
और
,
आर्ट
व
साइंस
के
पाठ्यक्रमों
में
30
से
50
हजार
रुपये
तक
वसूल
लिए
जाते
हैं
.
तमिलनाडु
के
दो
मेडिकल
कॉलेजों
का
मामला
अभी
पकड़ा
गया
है
.
इस
विवाद
के
बाद
मानव
संसाधन
मंत्रालय
ने
डीम्ड
यूनिवर्सिटी
के
तमाम
नए
प्रस्तावों
पर
रोक
लगा
दी
है
.
साथ
ही
कैपिटेशन
फीस
को
लेकर
फंसे
श्री
रामचंद्र
यूनिवर्सिटी
और
श्री
बालाजी
मेडिकल
कॉलेज
के
ख़िलाफ़
जांच
भी
बैठा
दी
है
.
इस
मामले
में
सूचना
व
प्रसारण
राज्य
मंत्री
एस
.
जगतरक्षकन
पर
भी
आरोप
लगे
हैं
.
कहा
गया
है
कि
श्री
बालाजी
मेडिकल
कॉलेज
जिस
भारत
विश्वविद्यालय
के
तहत
चल
रहा
है
,
मंत्री
महोदय
उसके
कुलपति
हैं
.
यह
दूसरी
बात
है
कि
जगतरक्षकन
ने
इससे
इंकार
किया
है
.
बहरहाल
,
यह
तो
जांच
से
ही...
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