जब सामाजिक जीवन विचार-केंद्रित, सार्थक परिवर्तन- परिचालित न हो, जन आंदोलन रहित हो जाए, ताक़तवर लोगों की सरपरस्ती के तहत ही जीने की मजबूरी हो, लोकतंत्र
के विकास के लिए न कोई आकांक्षा हो न तैयारी, व्यापक असमानता, कुव्यवस्था, बेरोज़गारी ही संरचना का चरित्र हो जाए, रजनीति का अकेला अर्थ हो जाए सत्ता के ज़रिए धन का संग्रह- वैसे समय में वीपी सिंह जैसे इतिहास पुरुष की याद आनी स्वाभाविक है, जो कुछ माह पूर्व ही हमसे जुदा हो गए हैं.अंग्रेजों का जमाना था. उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद तहसील की दो रियासतें थीं- डैया और मांउा. विश्वनाथ प्रताप सिंह का जन्म इसी डैया के राजघराने में 25 जून, 1931 को हुआ था. बचपन का लालन-पालन अपनी मां की गोद में यहीं हुआ, लेकिन अपने मूल पिता के परिवार में बालक विश्वनाथ का रहना पांच वर्ष तक ही हुआ. डैया के बगल की रियासत मांडा के राजा थे राजा बहादुर राम गोपाल सिंह. वह नि:संतान थे. अपनी राज परंपरा चलाने के लिए उन्होंने बालक विश्वनाथ के माता-पिता की सहमति से उन्हें गोद ले लिया. फिर तो विश्वनाथ ने पीछे नहीं देखा. गंभीरता से पठन-पाठन में जुट गए. परिणामस्वरूप हाईस्कूल तक कई विषयों में उत्कृष्टता मिली. बाद में वह बनारस के उदय प्रताप सिंह कॉलेज में पढ़ने आए. वहां अच्छे छात्र की पंक्ति में थे विश्वनाथ. प्रिंसिपल ने उन्हें प्रीफेक्ट बनाया. तब तक भारत को आज़ादी मिल चुकी थी. विश्वनाथ की मसें भी भींग रही थीं. विश्वनाथ ने छात्र संघ गठित करने की मांग रखी. अध्यक्ष पद के लिए प्रिंसिपल का एक लाड़ला छात्र खड़ा हुआ. उसे गुमान था कि वह प्रिंसिपल का उम्मीदवार है. प्रतिरोध व्यवस्था में पक्षपात के ख़िला़फ विश्वनाथ के कान खड़े हुए. आजीवन इस्तीफों से मूल्यों को खड़ा करने वाले, ग़लत का प्रतिरोध करने वाले भावी वीपी का यही उदय था. बस क्या था, प्रीफेक्ट पद से इस्तीफा दे दिया. उनकी ज़िंदगी का पहला इस्तीफा हुआ यह. समान विचारों के छात्रों ने संघ के अध्यक्ष पद के लिए उन्हें खड़ा कर दिया. युवा कांग्रेस का आग्रह टालकर वह स्वतंत्र उम्मीदवार बने और प्रिंसिपल के उम्मीदवार को हराकर जीत गए. वोट को आकृष्ट करने की क्षमता का यही बुनियादी अनुभव बना वीपी का. राजनीति इसी अंतराल में इनका विषय बनी. उनके व्यक्तित्व में दो ध्रुव थे. वैज्ञानिक बनने की और सामाजिक कार्यों से मान्यता की मंशा थी. चित्रकारी सामाजिक ध्रुव का हिस्सा थी. इन ध्रुवों के बीच कोई महत्वकांक्षा नहीं थी. इसी के बीच एक ठोस वीपी का उदय हुआ. 24 साल वर्ष की आयु में वह राजनीति की तऱफ संयोगवश मुखातिब हो गए. यहां भी वोट की राजनीति की कल्पना नहीं थी. 1955 में कांग्रेस के चवन्निया सदस्य बने, 24 साल की उम्र में. कांग्रेस में आने का विचार इतर था-सत्ता में हिस्सेदारी नहीं. अपने इलाक़ेके साधारण आदमी की सुनवाई जो नहीं हो रही थी, वही उनकी राजनीति का कालांतर में केंद्र बना.वीपी तन-मन से कांग्रेस की राजनीति में आ गए...

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