वे दिन गए जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि कमज़ोर और दब्बू नेता की हुआ करती थी। मनमोहिनी मुस्कान और भींचे होठ ही उनकी पहचान थी। आज मनमोहन का अंदाज़-ए-बयां कुछ बदला हुआ सा है। वह अब खुलकर नीतिगत ़फैसले लेने लगे हैं। मनमोहन न स़िर्फअपनी बल्कि अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों की ज़िम्मेदारियां भी तय करने लगे हैं। अब प्रधानमंत्री पहले की तरह लिखा हुआ भाषण नहीं पढ़ते. उन्हें अपने मन की भाषा बोलनी आ गई है. यही वजह है कि अपनी दूसरी पारी में संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में भाग लेते समय मनमोहन ने कोई लिखित भाषण नहीं पढा. वही कहा, जो उन्हें वाजिब लगा. विनम्र, मृदुभाषी प्रधानमंत्री के तेवर इन दिनों ज़रा सख़्त दिखने लगे हैं. उनके क़रीबी मित्र और सहयोगी उनके इस अंदाज़ से ख़ासे चकित हैं. अमूमन ख़ामोश रहने वाले मनमोहन सिंह अब अपने बेहद ख़ास सहयोगियों से भी सवाल करते दिख रहे हैं. न स़िर्फ सवाल बल्कि चेतावनी भी देते हैं. बंद कमरों में लिए गए निर्णय लालफीताशाही की भेंट न चढ़ें, इसकी ख़ातिर जनता और देश से जुड़े सभको सूचना के अधिकार क़ानून के तहत अब आम किया जा रहा है. इससे एक तो लोगबाग इस बात से वाक़िफ हो रहे हैं कि सरकार उनके लिए क्या कर रही है. दूसरे, इसके ज़रिए सरकार अपनी और सहयोगियों की जवाबदेही भी तय कर रही है. प्रधानमंत्री कार्यालय से इस बार कोई आदेश मौखिक नहीं दिया जा रहा . हर निर्देश काग़ज़ पर दिया जाता है, ताकि जवाबदेही से बचने या मुकरने की कोई ग़ुंजाइश ही न रहे. मनमोहन के इस रवैए की वजह उनके सहयोगी समझने की जुगत में हैं. दरअसल यह भारी जनादेश से मिली ज़िम्मेदारी है, जिसे निभाने का प्रयत्न किया जा रहा है. सरकार बनते ही मनमोहन सिंह ने एक पत्र अपने मंत्रिपरिषद के सभी सहयोगियों को भेजा. कैबिनेट सचिवालय ने यह चिट्ठी पब्लिक इनवेस्टमेंट बोर्ड, एक्सपेंडिचर फाइनेंस कमेटी सहित कई अन्य विभागों को भी भेजी. इसमें सभी को यह निर्देश दिया गया था कि सभी विभागों और मंत्रालयों द्वारा लिए ़फैसलों की सूचना तुरंत प्रधानमंत्री कार्यालय को दी जाए. यानी कि हर मंत्री, हर विभाग जो भी ़फैसला ले उसकी एक प्रति तुरंत प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी जाए. जबकि पहले होता ऐसा था कि अगर कोई भी ़फैसला एक से अधिक मंत्रालय या विभाग मिल कर लेते थे तो उनके बीच सामंजस्य करने की गरज से उसकी सूचना प्रधानमंत्री कार्यालय को दी जाती थी. अब प्रधानमंत्री अपने सहयोगियों के हर ़फैसले से सीधे वाक़ि़फ होना चाहते हैं.
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