अजय कुमार
मंत्री तो आते-जाते रहते हैं, लेकिन नौकरशाह हमेशा अपने पदों पर विराजमान रहते हैं. नौकरशाही की तुलना अक्सर घोड़े से की जाती है. कल्याण सिंह जब मुख्यमंत्री थे, तब एक बार उन्होंने यहां तक कह डाला था कि नौकशाही रूपी घोड़े को वह ही काबू में रख सकता है जिसकी रानों में ताक़त और लगाम को अपने ढंग से खींचने की क्षमता हो. ग़ौरतलब है कि नौकरशाही पर कल्याण सिंह की पकड़ की चर्चा काफी दिनों तक रही थी. यह बात दूसरी है कि कुसुम राय के बीच में
आ जाने पर यह पकड़ कुछ ढीली हो गई थी. पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीर बहादुर सिंह की भी नौकरशाही पर जबर्दस्त पकड़ थी. वह नौकरशाहों को ‘पेपर वेट’ की तरह जैसे चाहते घुमाते-फिराते थे, लेकिन उनकी विरासत संभाले उनके पुत्र और वन मंत्री फतेह बहादुर सिंह को पिता के ऩक्शे क़दम पर चलना महंगा पड़ गया. मंत्री जी को नसीहत देने के लिए एक नौकरशाह ने ऐसा रास्ता चुना, जिससे मंत्री जी की न केवल जनता के सामने फजीहत हो गई, बल्कि वह उफ भी नहीं कर पाए. पूरा मामला इस प्रकार है.पिछले दिनों जिला महाराजगंज के पनियरा विधानसभा क्षेत्र के विधायक और मंत्री फतेह बहादुर सिंह क्षेत्र के दौरे पर गए हुए थे. वहां उन्हें बसपा कार्यकर्ताओं ने घेर लिया. कार्यकर्ताओं की एक ही शिकायत थी कि मंडलायुक्त पी.के मोहंती कार्यकर्ताओं की नहीं सुनते हैं, जिस कारण जनता के सामने उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ती है. कार्यकर्ताओं ने मंत्री जी को यहां तक बताया कि मंडलायुक्त के घनिष्ट संबंध लखनऊ के पंचम तल में बैठने वाले कई उच्च अधिकारियों से हैं, जिस कारण वे बेलगाम हो गए हैं. फतेह बहादुर सिंह कार्यकर्ताओं का हमेशा ख़याल रखते हैं. उन्हें यह बात असहज लगी. उन्होंने तुरंत मंडलायुक्त मोहंती को फोन लगा दिया. मोहंती ने मंत्री जी के फोन को कोई तवज्जो नहीं दी. यह बात फतेह बहादुर सिंह को काफी नागवार गुज़री. उन्होंने मुख्यमंत्री से इस नौकरशाह की शिकायत करने का मन बनाया तो उनके ही कुछ सहयोगी मंत्री उन्हें हतोत्साहित करने लगे. उन्होंने एक सर्वसमाज के मंत्री और दलित नौकरशाह (जिलाधिकारी) से जुड़ा किस्सा भी सुना दिया. बात ज़्यादा पुरानी नहीं थी, इसलिए सबके दिलो-दिमाग़ में ताज़ा थी. माया कैबिनेट के इस मंत्री की किसी बात पर उस दलित नौकरशाह से मनमुटाव हो गया. इस नौकरशाह को जब मंत्री जी ने अपने अर्दब में लेने की कोशिश....

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