महेंद्र अवधेश बीती 15 नवंबर को राष्ट्रीय राजधानी की एक अदालत ने एक ऐसे शिक्षक को एक लाख रुपये मुआवजे की सजा से दंडित किया, जिसने आज से 12 वर्ष पहले एक छात्र को पूरे दिन निर्वस्त्र ख़डा रखा था. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रतिभा रानी ने अपने फैसले में उक्त शिक्षक को निर्देश दिया कि वह बतौर मुआवजा एक लाख रुपये पी़िडत छात्र को अदा करे. घटना 25 मई 1997 की है. दिल्ली के एक राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक पी सी गुप्ता ने अपनी कक्षा के एक तेरह वर्षीय छात्र को विद्यालय के तालाब में नहाते हुए पक़ड लिया. गुप्ता उस छात्र के कृत्य से इतने नाराज हुए कि उन्होंने पहले उसे जमकर पीटा, फिर पूरे समय तक विद्यालय में निर्वस्त्र ख़डा रखा. बाद में अभिभावकों ने उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, मुकदमा चला और 19 मार्च 2007 को निचली अदालत ने गुप्ता को एक वर्ष की कैद और ढाई हजार रुपये जुर्माने की सजा सुना दी. गुप्ता इन दिनों अपनी सजा काट रहे थे. उन्होंने निचली अदालत के उसी फैसले को चुनौती दी थी. उनकी अपील के आलोक में न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी ने अपना ताजा फैसला दिया है. अच्छे व्यवहार की शर्त पर गुप्ता को दो वर्ष की परिवीक्षा अवधि पर रिहा करने से पहले न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी ने उनकी हरकत की क़डे शब्दों में निंदा भी की. पिछले कुछ दिनों से इस तरह की घटनाएं अक्सर ही सुनने-प़ढने को मिलती रहती हैं, जिनमें मामूली सी गलती पर शिक्षकों द्वारा छात्र-छात्राओं को ब़डी बेरहमी से दंडित किए जाने की बात.
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