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मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

असम में क्यों नाकाम रही क्षेत्रवाद की राजनीति

दिनकर कुमार

असम में क्षेत्रवाद की राजनीति के भविष्य को लेकर इन दिनों का़फी चर्चाएं हो रही हैं. इस चर्चा के केंद्र में है असम गण परिषद. अपनी स्थापना के साथ ही यह राजनीतिक दल जनता का ध्यान आकर्षित करता रहा है. अगप यानी असम गण परिषद की गतिविधियों में स्थानीय मीडिया की भी ़खासी दिलचस्पी रहती है. छह वर्षों तक चले विदेशी बहिष्कार आंदोलन के गर्भ से अगप का जन्म हुआ था और उस समय इसे जनता का ज़बरदस्त समर्थन प्राप्त हुआ था. अगप ने दो बार विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर राज्य में अपनी सरकार भी बनाई. इसने कांग्रेस के परपंरागत वोट बैंक में सेंध लगाकर उसे पराजित करने का करिश्मा कर दिखाया था. दरअसल, कांग्रेस का शुरू से ही मानना रहा कि जब तक अली-कुली यानी मुसलमान एवं चाय बागान के मज़दूर असम में हैं, तब तक उसे कोई नहीं हरा सकता. सबसे पहले गोलाप बरबरा के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार ने कांग्रेस के दर्प को चूर किया और फिर अगप ने. एक समय वह भी था, जब अगप क्षेत्रवाद का प्रतीक बन गई थी. स्वाभाविक तौर पर आज यह सवाल फिर सामने ख़डा है कि क्या अगप फिर सरकार बनाने में सफल हो पाएगी?ऐसा भी नहीं है कि असम में अगप के वजूद में आने से पहले कोई क्षेत्रीय दल नहीं था. जानकार बताते हैं कि कोच राजवंशी समुदाय के लिए पृथक उदयाचल राज्य की मांग के पीछे एक कांग्रेसी नेता का हाथ था, जो बाद में मुख्यमंत्री बन गए और अपनी मांग को भूल गए. लेकिन आज भी कोच राजवंशी समुदाय पृथक कमतापुर राज्य के लिए आंदोलन चला रहा है...


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