
देश के दो सबसे संवेदनशील भू-भाग. एक तो उत्तर में भारत का सिरमौर जम्मू-कश्मीर और दूसरा देश के उत्तर पूर्व का हिस्सा. दोनों ही जगहों के लोग और सिविल सोसाइटी औपचारिक तौर पर पहली बार नवंबर में एक साथ नज़र आए. वे आर्म्ड फोर्सेस (स्पेशल पावर) एक्ट 1958 को खत्म करने की मांग करने के लिए एकजुट हुए थे. दिल्ली में इनकी बैठक हुई, जिसमें ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले कई संगठनों ने हिस्सा लिया. वे एकजुट होकर एएफएसपीए के खिलाफ अभियान चलाने पर सहमत हुए. उनका विचार था कि इस अधिनियम ने लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को दबा दिया है. यह क़ानून अगर और भी लंबे समय तक चलता रहा तो हिंसा का दौर गहराता ही चला जाएगा. प्रतिभागियों के बीच इस बात को लेकर आम सहमति थी कि राजनीतिक अस्थिरता की मूल वजह को खत्म करने के लिए ज़रूरी लोकतांत्रिक संभावना तभी तलाशी जा सकती है, जबकि इस क़ानून को खत्म कर दिया जाए. एएफएसपीए, जिसे पूर्वोत्तर राज्य के पहले विद्रोही संगठन नागा काउंसिल को नेस्तनाबूद करने के लिए लाया गया था, आतंकवाद को जड़ से खत्म कर पाने में सक्षम नहीं है. आज असम और मणिपुर में कम से कम 75 आतंकवादी संगठन हैं और इस क्षेत्र के दूसरे राज्यों में भी कई भूमिगत संगठन हैं. ठीक इसी तरह, जम्मू-कश्मीर में भी 1990 में आर्म्ड फोर्सेस (जम्मू-कश्मीर) स्पेशल पावर एक्ट लाया गया, लेकिन यह आतंकवाद का स़फाया नहीं कर पाया.....
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