बधाइयां बांटता और शुभकामनाएं बिखेरता नया वर्ष आ चुका है. उधर केवल ग्यारह दिन पहले ही 20 दिसंबर की आधी रात को देवगुरु वृहस्पति ने आगामी लगभग एक वर्ष के लिए कुंभराशि में प्रवेश कर लिया है. इसका सीधा अर्थ यह है कि अब आकाश के ग्रह नक्षत्र भी धरती वालों को कुंभ स्नान कराने की स्थिति में आने लगे हैं. उधर वृहस्पति कुंभ राशि में प्रविष्ट हुए और इधर हरिद्वार में 2010 के कुंभ के लिए सरकारी कुंभ काल की अधिसूचना जारी हुई. एक जनवरी 2010 से 30 अप्रैल 2010 तक के लिए हरिद्वार घोषित कुंभनगर हो गया! 14 जनवरी को सूर्य उस मकर राशि में प्रविष्ट होंगे, जो संवत्सर मुख कहलाती है. यानी वह संक्रांति, जो पिछले संवत्सर की विदाई का माहौल बनाती है और नव संवत्सर को न्यौता भेजकर उसके स्वागत की तैयारियां भी करती है. तब हवाओं में वासंती गंध घुलने लगती है और खेत-खलिहानों में सरसों एवं टेसू फूलने के दिन आने लगते हैं. प्रकृति अपने सौंदर्य प्रसाधन एकत्र करके सजने लगती है. मादक वसंत होली के रंग बिखेरता हुआ उत्सवधर्मी भारतीयों के दरवाज़ों पर दस्तक देने लगता है. और, ऐसे में उस महापर्व की आहट भी साफ़ सुनाई पड़ने लगती है, जिसके लिए गंगा के तट बारह बरसों तक अपलक प्रतीक्षा में रहते हैं. कहने का अर्थ यह है कि आस्तिक भारतीयों के मन में बसा और मोक्ष का पर्याय माना जाने वाला महाकुंभ आकाशीय रास्तों से धरती पर आ चुका है. हरिद्वार में कुंभ का योग वृहस्पति, जिन्हें देवताओं का गुरु भी माना जाता है, की कुंभ राशि में स्थिति के समय आता है. इस काल का सर्वाधिक पवित्र दिन वह होता है, जब सूर्य मेष राशि में संक्रमित होता है. लेकिन गुरु का कुंभस्थ होना ही अधिक महत्वपूर्ण है. सामान्यत: माना जाता है कि वृहस्पति एक राशि में एक वर्ष तक रहता है और...
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