रवि किशोर

गृहमंत्री पी चिदंबरम ने बीती 9 दिसंबर को एक अलग तेलंगाना राज्य के गठन की मांग पर सरकार की स्वीकृति की घोषणा की थी. इस घोषणा ने राजनीतिक भूचाल ही खड़ा कर दिया. राज्य को बांटने के मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े विधायकों ने विरोध में सामूहिक तौर पर पद से त्यागपत्र दे दिया. इस विरोध का परिणाम यह हुआ कि सरकार इस मुद्दे पर पीछे हट गई. 23 दिसंबर, 2009 को सरकार ने यह घोषणा कर दी कि तेलंगाना का मसला अनिश्चित समय तक के लिए टाल दिया गया है. सरकार की ओर से यह दलील दी गई कि इस मसले पर नए सिरे से विचार विमर्श की ज़रूरत है. गृहमंत्री का बयान था कि आंध्र प्रदेश में स्थिति का़फी बदल चुकी है. इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों के बीच व्यापक मतभेद हैं,

इसलिए राज्य के विभिन्न राजनीतिक दलों और संगठनों से व्यापक विचार विमर्श की ज़रूरत है. भारत सरकार इस प्रक्रिया में संबंधित पक्षों को शामिल करने के लिए ज़रूरी क़दम उठा रही है.
केंद्र सरकार द्वारा इस तरह पलटी मारने से यह बात एक बार फिर से सामने आई कि कुछ भी करने से पहले उसने कोई होमवर्क नहीं किया और घोषणा करने में जल्दबाजी दिखाई. संप्रग नेतृत्व और केंद्र सरकार किस बात से प्रेरित होकर तेलंगाना को अलग राज्य बनाने की प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा को उद्यत हुए, यह बात समझ से...
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