विमल राय

पृथक गोरखालैंड राज्य के मसले पर 21 दिसंबर को दार्जिलिंग में हुई त्रिकोणीय बातचीत का नतीजा वैसा ही होना था, जैसा कभी भारत-पाक सचिव स्तर की वार्ता का होता था. यानी बातचीत में यही तय हो पाता था कि अगली बातचीत कब होगी. कुछ ऐसा ही हुआ उस दिन. गोरखालैंड के मसले पर 2008 से कुल चार दौर की बातचीत हो चुकी है, पर गतिरोध जस का तस है. दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल पंगु बनी हुई है. इलाक़े को छठीं अनुसूची में शामिल करने की पहल विमल गुरुंग ने बहुत पहले ही ठुकरा दी और गोरखालैंड राज्य बनाने के विरोध में बंगाल के सभी बड़े दल उतर आए हैं.
इन हालात में बंगाल के एक और विभाजन की राह का़फी मुश्किल लगती है. दार्जिलिंग के मैदानी हिस्सों में आमरा बंगाली, बांग्ला ओ बांग्ला भाषा बचाओ समिति और जन जागरण मंच जैसे संगठनों ने भी गोरखालैंड के विरोध में मोर्चा संभाल लिया है. त्रिपक्षीय वार्ता के दिन इनके समर्थकों ने विमल गुरुंग के पुतले एवं पार्टी के झंडे जलाए. एक घमासान का माहौल है, पर शुक्र है कि हिंसा की लपटें नहीं उठ रही हैं.
10 दिसंबर को तेलंगाना मामले पर केंद्र के ऐलान के तुरंत बाद गोरखा जन मुक्ति मोर्चा ने पहाड़ पर अनशन शुरू कर दिया और पार्टी के महासचिव रोशन गिरि की अगुवाई में एक जत्था दिल्ली भी धरना देने पहुंच गया. सिलीगुड़ी और सारे पहाड़ी शहरों में बापू का चित्र रखकर अनशन शुरू हो गया. त्रिपक्षीय वार्ता हेतु बेहतर माहौल बनाने के लिए राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी और गृहमंत्री पी चिदंबरम के आग्रह पर विमल गुरुंग ने बारी-बारी से बंद एवं अनशन कार्यक्रम रद्द कर दिए.

गोरखाओं की संस्कृति अलग दिखाने के लिए दार्जिलिंग के सभी लोगों को जातीय वेशभूषा में रहने का फरमान सुनाया गया. केंद्र की ओर से गृह सचिव जी के पिल्लै, राज्य सरकार की ओर से मुख्य सचिव अशोक मोहन चक्रवर्ती और जन मुक्ति मोर्चा की तऱफ से रोशन गिरि एवं पार्टी के दूसरे नेता थे. ग़ौर करने वाली बात यह थी कि दार्जिलिंग में होने के बावजूद विमल गुरुंग इसमें शामिल नहीं हुए. एक बेहतर माहौल में त्रिपक्षीय बातचीत शुरू तो हुई, पर इसमें उन मसलों पर भी फैसला नहीं हो सका, जिनके बारे में अगस्त की त्रिपक्षीय बैठक में तय किया गया था. उस बैठक में दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल का विकल्प तलाशने, दो स्तरीय पंचायत प्रणाली को त्रिस्तरीय बनाने, नगरपालिका चुनाव कराने और लंबित विकास योजनाओं को फिर से शुरू करने के लिए आगे पहल पर सहमति बनी थी. इस बार की बातचीत में गोरखा नेताओं ने अपना एजेंडा अलग गोरखालैंड राज्य ही रखा था. राज्य सरकार के प्रतिनिधियों ने जब बातचीत को इलाक़े के विकास पर ही केंद्रित रखना चाहा तो गोरखा नेताओं ने सा़फ कहा कि...
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