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शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

समस्याओं को मत टालिए

संतोष भारतीय
सौ रुपये किलो दाल देश में कितने लोग खाते होंगे. चीनी कड़वी हो गई है, लाखों लोगों ने चाय पीना बंद कर दिया है. आटा, चावल एक साथ खाने वाले लोगों की संख्या कम हो रही है. मध्यम वर्ग के निचले तबके ने बाज़ार उठने के बाद बची या फेंकी हुई सब्जी खाना शुरू कर दिया है, क्योंकि सब्जी उनकी पहुंच में नहीं है.


कोई भी शासन करे, उसे समझ लेना चाहिए कि समस्याओं को टालना ख़तरनाक होता है. तेलंगाना एक ऐसी ही समस्या है. इससे पहले जब भाजपा ने छत्तीसग़ढ, झारखंड और उत्तरांचल बनाए थे, तभी लगने लगा था कि राज्यों के बंटवारे की मांग उठेगी और मज़बूती से उठेगी. तेलंगाना के निर्माण का आश्वासन गृहमंत्री चिदंबरम ने चंद्रशेखर राव के आमरण अनशन के दबाव में दिया था, तब उन्हें नहीं लगा होगा कि आंध्र में बंटवारे के ख़िला़फ भी आंदोलन खड़ा हो जाएगा. लेकिन चिदंबरम या सरकार यह तो समझ ही रही होगी कि उत्तर प्रदेश और बंगाल को बांटने की मांग भी उठ खड़ी होगी. अब सरकार परेशानी में है, पर यह परेशानी उसकी अपनी समझ के कारण पैदा हुई है.
छोटे राज्यों के निर्माण के पीछे का मुख्य तर्क है कि इसमें राज्य का विकास होगा और राज्य में भूख, बीमारी में कमी आएगी और रोज़गार के अवसर ब़ढेंगे. हरियाणा ने इस आशा को ब़ढाया भी. वहां का शासन ज़्यादा सक्षम हुआ, प्रशासन ने कार्यक्रम पूरे करने में ताक़त लगाई, लेकिन दूसरे प्रदेशों में यह काम नहीं हो पाया. झारखंड इसका जीवित उदाहरण है, जहां देश में सबसे ज़्यादा अकूत प्राकृतिक संपदा है, जहां के प्राकृतिक संसाधनों को बाहर ले जाकर हवाई जहाज से लेकर परमाणु ईंधन तक बनाया जा रहा है, लेकिन झारखंड में रहने वालों के पास न घर है और न रोटी. अब तो यहां की लड़कियां देश के देह बाज़ारों में बड़ी संख्या में दिखाई दे रही हैं. ऐसा राजनीतिज्ञ तलाशना चिराग लेकर सुई तलाशने जैसा हो गया है, जो ईमानदार हो और जिसे सब ईमानदार मानते भी हों. उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ भी विकसित नहीं हो पाए...
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