अनंत विजय
हिंदी में अनुवाद की स्थिति अच्छी नहीं है.विदेशी साहित्य को तो छोड़ दें, अन्य भारतीय भाषाओं में लिखे जा रहे श्रेष्ठ साहित्य भी हिंदी में अपेक्षाकृत कम ही उपलब्ध हैं. अंग्ऱेजी में लिखे जा रहे रचनात्मक लेखन को लेकर भी हिंदी के प्रकाशकों में खासा उत्साह नहीं है. हाल के दिनों में पेंग्विन प्रकाशन ने कुछ अच्छे भारतीय अंग्ऱेजी लेखकों की कृति का अनुवाद प्रकाशित किया है, जिनमें नंदन नीलेकनी, नयनजोत लाहिड़ी, अरुंधति राय की रचनाएं प्रमुख हैं.पेंग्विन के अलावा हिंदी के भी कई प्रकाशकों ने इस दिशा में पहल की है, लेकिन उनका यह प्रयास ऊंट के मुंह में जीरे जैसा है. राजकमल प्रकाशन ने भी विश्व क्लासिक श्रृंखला में कई बेहतरीन उपन्यासों और किताबों का प्रकाशन किया था, लेकिन उसकी रफ़्तार भी बाद के दिनों में धीमी पड़ गई. राजकमल के अलावा संवाद प्रकाशन, मेरठ ने इस दिशा में उल्लेखनीय काम किया है. स़िर्फ कुछ प्रकाशनों की पहल से इस कमी को पूरा नहीं किया जा सकता है. हालत यह है कि साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त लेखकों या लेखिकाओं की पुस्तकें भी हिंदी में
मुश्किल से मिलती हैं. लेकिन हाल के दिनों में हिंदी के प्रकाशकों ने अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेलों में अपनी भागीदारी बढ़ाई है और वहां जाकर विदेशी भाषाओं की श्रेष्ठ पुस्तकों के हिंदी में प्रकाशन अधिकार खरीदने की पहल शुरू की है. नतीजा यह हुआ कि हिंदी में भी विश्व की चर्चित कृतियों के प्रकाशन में इज़ा़फा होता दिखने लगा है. राजकमल प्रकाशन के साथ अब वाणी प्रकाशन ने भी इस दिशा में ठोस और सार्थक पहल की है. वाणी प्रकाशन ने वर्ष 2004 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार प्राप्त एल्फ्रीडे येलिनिक की कृति दी क्लावीयरश्पीलेरिन का हिंदी अनुवाद पियानो टीचर के नाम से छापा है. इस कृति का अनुवाद विदेशी भाषा साहित्य की त्रैमासिक पत्रिका सार संसार के मुख्य संपादक और जर्मन भाषा के विद्वान अमृत मेहता ने किया है. एल्फ्रीडे येलिनिक ऑस्ट्रिया कम्युनिस्ट पार्टी की लगभग डे़ढ दशक तक सदस्य रह चुकी हैं. नब्बे के दशक के शुरुआती वर्षों में येलिनिक की आक्रामकता ने उन्हें ऑस्ट्रिया की राजनीति में एक नई पहचान दी, लेकिन कालांतर में उनका राजनीति से मोहभंग हुआ और वह पूरी तरह से लेखन की ओर मुड़ गईं. जब येलिनिक ने लेखन में हाथ आज़माए तो यहां भी उनकी भाषा का़फी आक्रामक रही. येलिनिक ने लगभग पचास वर्ष पूर्व के विएना के नैतिक और सामाजिक पतन को अपने लेखन का विषय बनाया तथा उस पर जमकर लेखन किया. येलिनिक की रचनाओं की थीम और उसमें प्रयोग की जाने वाली भाषा को लेकर आलोचकों ने उन पर जमकर हमले किए. एल्फ्रीडे येलिनिक पर बहुधा यह आरोप लगता रहा है कि कि उन्होंने ऑस्ट्रिया के समाज में व्याप्त विकृतियों और कुरीतियों को अश्लील भाषा में अपने साहित्य में अभिव्यक्ति दी.
दरअसल येलिनिक ने अपने साहित्य में फीमेल सेक्सुअलिटि, फीमेल अब्यूज और विपरीत सेक्स के बीच जारी द्वंद को प्रमुखता से लेखन का केंद्रीय विषय बनाया. नोबेल पुरस्कार प्राप्त कृति पियानो टीचर में भी येलिनिक ने मानवीय संबंधों में क्रूरता और शक्ति प्रदर्शन के खेल को बेहद संजीदगी से उठाया है और बग़ैर किसी निष्कर्ष पर पहुंचे पाठकों के सामने कई अहम सवाल छोड़ दिए हैं. एल्फ्रीडे येलिनिक का यह उपन्यास पियानो टीचर अंग्रेज़ी में 1988 में प्रकाशित हुआ, जिसमें पियानो टीचर ऐरिका कोहूट के जीवन में
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