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सोमवार, 21 दिसंबर 2009

लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट के बाद भी आरएसएस पर बैन क्यों नहीं?

मनीष कुमार

सरकार और कांग्रेस पार्टी ने लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट को समझने में चूक की है, इसलिए वह सही कार्रवाई नहीं कर सकी. उसने लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट के शब्दों और वाक्यों को पढ़ा, लेकिन वह रिपोर्ट को उसके सही संदर्भ में नहीं समझ सकी. सरकार ने कारण को प्रभाव समझ लिया और प्रभाव को बड़ी निर्लज्जता के साथ पूरे विषय से बाहर रखने में वह कामयाब रही. बाबरी मस्जिद का गिरना राम जन्मभूमि आंदोलन का प्रभाव नहीं है. बाबरी मस्जिद विध्वंस दरअसल कारण है, जिसका प्रभाव है, देश भर में हुए दंगे. जिसका प्रभाव है, हज़ारों मासूम लोगों की हत्याएं और करोड़ों-अरबों का भारी नुक़सान. अब जिन लोगों ने इस कारण को जन्म दिया, दरअसल वे लोग ही दंगे के असली ज़िम्मेदार हैं. मस्जिद को गिराने और राम मंदिर बनाने की साज़िश तथा हठ की वजह से कई बेबस औरतों की गोदें सूनी हुईं, कई औरतें विधवा बनीं, बहनों ने भाई खोए और न जाने कितने बच्चों के सिर से मां-बाप का साया उठ गया. इनमें हिंदू भी थे और मुसलमान भी. इसलिए लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट को सिर्फ बाबरी मस्जिद के विध्वंस के चश्मे से देखना सरासर बेईमानी है.जिन लोगों ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए देश भर से कारसेवकों को इकट्ठा किया, जिन्होंने 6 दिसंबर 1992 से पहले शिलान्यास के नाम पर देश के हर शहर-हर कस्बे में आतंक और दंगे का माहौल बनाया, जिनकी वजह से कई शहरों में दंगे हुए, हज़ारों लोगों की जानें गईं और करोड़ों का नुक़सान हुआ. बाबरी मस्जिद गिरने के बाद देश के कई शहरों में फिर से दंगे भड़के. इस दंगे में भी हज़ारों लोगों की जानें गईं और करोड़ों रुपये की संपत्ति का नुक़सान हुआ. भारत की साझी संस्कृति और सामाजिक भाईचारे पर कुठाराघात हुआ. इस दौरान देश में जितने भी दंगे हुए, अगर उनके बारे में एक-एक वाक्य भी लिखा जाए तो इस अ़खबार के सारे पन्ने कम पड़ जाएंगे. ये जानकारियां आम हैं. सब जानते हैं. सरकार भी जानती है. जो लोग, जो संगठन, जो नेता बाबरी मस्जिद के विध्वंस के ज़िम्मेदार हैं, वे देश में फैले आतंक के माहौल, हत्या, दंगे और दंगों के दौरान निर्मम कुकृत्यों के लिए ज़िम्मेदार हैं. अगर ये संगठन नहीं होते, अगर ये नेता नहीं होते तो राम जन्मभूमि आंदोलन नहीं होता और देश में दंगे भी नहीं होते. अब जब लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए ज़िम्मेदार संगठनों और नेताओं के नाम बड़ी स़फाई से सामने रख दिए हैं, तो क्या सरकार की यह ज़िम्मेदारी नहीं है कि साज़िश करने वाले संगठनों और नेताओं के खिला़फ वह कार्रवाई करे? लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट ने संघ और भाजपा को गुनहगार बताया है तो सरकार संघ पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाती?सरकार ने राजधर्म का पालन नहीं किया. सरकार न्याय करने में चूक गई. लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट अब सबके सामने है. सरकार की कार्रवाई सामने है. लगता है, सरकार ने बाबरी मस्जिद के गुनहगारों को माफ़ी दे दी. ऐसा महसूस होता है, सरकार ने राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान और बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद हुए दंगों को भी भुला दिया. ऐसा लगता है कि सरकार छोटी मछलियों को तो सज़ा दिला सकती है, लेकिन उसमें मगरमच्छों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं है. क़ानून छोटे-मोटे पैदल सैनिक को तो सज़ा दे देगा, लेकिन इस पूरे खेल के मास्टर माइंड को कौन सज़ा दे. जिन लोगों ने दंगे के दर्द को झेला, परिवार के सदस्यों को खोया और जिनके घर जलाए गए, उन्हें न्याय कौन दिलाएगा? ये लोग सरकार की कायरता की वजह से खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं. उनका पूरी व्यवस्था से विश्वास उठ रहा है. इन लोगों के पास लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट पर टेलीविजन पर होने वाली बहस को सुनने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है. लगभग 17 साल के बाद लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट संसद में पेश की गई. इस कमीशन की अवधि 48 बार बढ़ाई गई. लिब्रहान कमीशन ने इस दौरान 399 बैठकें कीं और सौ के.....

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