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सोमवार, 21 दिसंबर 2009

बैगा आदिवासियों के नाम पर करोडों की लूट


संध्या पांडे
करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी मध्य प्रदेश में आदिवासी बैगा जनजाति अभी भी भुखमरी की शिकार है. एक अनुमान के अनुसार, सरकार की ओर से अब तक जितना अनुदान बैगा जनजाति के कल्याण कार्यों के लिए मिला है, यदि उसे बैगा परिवारों में बांट दिया जाता तो प्रत्येक परिवार को लगभग साढ़े सात लाख रुपये अपनी हालत सुधारने के लिए सीधे मिल सकते थे. सरकारी तंत्र ने बैगाओं के नाम पर केंद्र सरकार द्वारा आवंटित धनराशि पिछले डेढ़ दशक के दौरान जमकर लूटी.

आदिवासियों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए केंद्र और राज्य सरकारें सामान्य बजट से हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती हैं. इसके अलावा बैगा विकास प्राधिकरण को केंद्र ने करोड़ों रुपये की सहायता अलग से दी है, लेकिन इसके बावजूद बैगाचक का न तो कोई विकास हुआ है और न ही बैगाओं की हालत में कोई सुधार दिखाई देता है. आजादी के बाद से वर्ष 2002 तक केंद्र एवं राज्य सरकार के आदिवासी बजट और बैगा विकास प्राधिकरण के लिए प्राप्त केंद्रीय सहायता की कुल धनराशि 95 अरब 93 करोड़ रुपये थी. यह पूरा धन बैगाचक के विकास और बैगाओं के सामाजिक- आर्थिक

कल्याण के लिए खर्च बताया जाता है, लेकिन बैगाचक और बैगाओं की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ.

मध्य प्रदेश के पांच ज़िलों में बैगा प्राधिकरण कार्यरत हैं. मंडला प्राधिकरण में 249 गांव हैं, जिनमें 23509 बैगा निवास करते हैं. डिंडौरी ज़िले में 217 गांवों में 21239, शहडोल ज़िले में 238 गांवों में 35120, उमरिया ज़िले के 248 गांवों में 37600 और बालाघाट ज़िले में 191 गांवों में 13957 बैगा निवास करते हैं. इस प्रकार मध्य प्रदेश में कुल 1,31,425 बैगा हैं. लगभग डेढ़ लाख बैगा छत्तीसगढ़ के विभिन्न ज़िलों में रहते हैं. सरकार ने इन बैगाओं के उत्थान और विकास के लिए जो धन सीधे खर्च होना बताया है, यदि उसे सीधे बैगाओं में बांट दिया जाता तो हर परिवार के हिस्से में 7.30 लाख रुपये आते. लेकिन सरकार के इरादे चाहे जितने पवित्र क्यों न हों, सरकारी तंत्र ने जिस प्रकार काम किया, उससे बैगाओं के कल्याण और विकास का करोड़ों रुपया भ्रष्टाचार के हवन में स्वाहा हो गया.

चौथी दुनिया ने मध्य प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में बैगाओं की स्थिति का


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