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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

इंसाफ की आवाज पर पाबंदी

आदियोग
चिंता यह कि ऑपरेशन ग्रीन हंट की धमक ने आदिवासियों को आतंक और असुरक्षा के गहरे अंधेरे में धकेल देने का काम किया है. नतीजा यह कि विस्थापन की भगदड़ बेतहाशा फैल रही है, गांव के गांव उजड़ रहे हैं.

अपनी मर्ज़ी की मालिक हो चुकी सरकारें खुद के गिरहबान में ताकझांक की इजाज़त भला क्यों देंगी? वह क्यों चाहेगी कि उनके कामकाज की चीरफाड़ हो उनकी नीयत की चिंदी-चिंदी उड़े? ज़ाहिर है, वह तो ऐसी हिमाकत को रोकने की हरसंभव कोशिश करेगी और उसे क़ानून व्यवस्था बनाए रखने की कार्रवाई का ही नाम देगी. विकास के लिए शांति चाहिए और उनके लिए शांति का मतलब मरघटी ख़ामोशी से है.
इसी कड़ी में बस्तर का हाल सुनें. दंतेवाड़ा में 14 से 26 दिसंबर तक पदयात्रा का आयोजन तय था. पदयात्रा के बाद सत्याग्रह का सिलसिला शुरू होना था, जिसका समापन अगली सात जनवरी को जन सुनवाई के रूप में होना था. जन सुनवाई में वित्त मंत्री पी चिदंबरम के शामिल होने की भी चर्चा थी. वह ख़ुद भी ऐसी इच्छा रख चुके थे. 14 दिसंबर से सात जनवरी तक का यह कार्यक्रम बस्तर को जंग का मैदान बनने से रोकने के लिए बनाया गया था...


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